Saturday, 12 December 2015

कुण्डली से विवाह का विचार (Analysing marriage through Horoscope)

कर्म के अनुसार ईश्वर सबकी जोड़ियां बनाता है.जब जिससे विवाह होना होता है वह होकर रहता है.लेकिन जब वर और कन्या विवाह योग्य होते हैं तो माता पिता उनकी शादी को लेकर चिंतित रहते हैं
तो वर कन्या भी इस बात को लेकर उत्सुक होते हैं कि उनका विवाह कब, किससे और कहां होगा.

 




दिशा और स्थान में विवाह
आमतौर पर कन्या के लिए वर तलाश करते समय काफी परेशानियों का सामना करना होता है.अगर यह पता हो कि विवाह किस दिशा और स्थान में होना है तो वर तलाश करना अभिभावक के लिए आसान हो जाता है.कुण्डली में अगर सप्तम स्थान में वृष, कुम्भ या फिर वृश्चिक राशि है तो यह समझना चाहिए कि व्यक्ति का जीवनसाथी माता पिता के घर से लगभग 70-75 किलोमीटर दूर है.मिथुन, कन्या, धनु या फिर मीन राशि सप्तम भाव में है तो जीवनसाथी की तलाश के लिए लगभग 125 किलोमीटर तक जाना पड़ सकता है.सप्तम भाव में मेष, कर्क, तुला या मकर राशि होने पर जीवनसाथी 200 किलोमीटर और उससे दूर होता है.

सप्तम भाव में जो ग्रह स्थित होते हैं उनमें से जो बलवान होता है उस ग्रह की दिशा मे व्यक्ति का विवाह होता है.सप्तम भाव अगर खाली है तो जिस ग्रह की दृष्टि इस भाव पर अधिक प्रभावशाली हो उस ग्रह की दिशा में विवाह होना समझना चाहिए.अगर किसी ग्रह के द्वारा सप्तम भाव दृष्ट नहीं हो तब उस भाव में स्थित राशि अथवा नवांश राशि की दिशा में विवाह होने की संभावना प्रबल होती है.

विवाह किससे
ज्योतिष विधान के अनुसार कुण्डली में व्यक्ति के लग्नेश या सप्तमेश में जो उच्च या नीच की राशि होती है उसी के अनुसार चन्द्र या लग्न राशि का जीवनसाथी मिलता है.चन्द्र राशि, स्थिर राशि और इनके नवमांश के पंचम या नवम स्थान में जो बलशाली राशि होती है वयक्ति का जीवन साथी उसी राशि का होता है.

जीवनसाथी की आर्थिक स्थिति
जीवनसाथी की आर्थिक स्थिति का विचार करते समय अगर धनेश की दृष्टि सप्तम भाव पर हो या फिर सप्तमेश धन भाव को देख रहा हो तो यह इस बात का संकेत समझना चाहिए कि जीवनसाथी धनवान होगा.सप्तमेश जन्मपत्री में चतुर्थ, पंचम, नवम अथवा दशम भाव में हाने पर विवाह सुखी सम्पन्न एवं धनवान परिवार में होता है.सप्तमेश अगर द्वितीयेश, लाभेश, चतुर्थेश या कर्मेश के साथ प्रथम, चतुर्थ, सप्तम या दशम भाव में युति बनता है तो विवाह धनिक कुल में होना संभव होता है.

जीवनसाथी की आजीविका
जन्म कुण्डली में अगर चतुर्थ भाव का स्वामी द्वितीय अथवा द्वादश भाव में होता है तो नौकरी करने वाला जीवनसाथी मिलता है.चतुर्थ भाव का स्वामी केन्द्रभाव के स्वामी के साथ युति बनता है तो जीवनसाथी व्यवसायी होता है.इसी प्रकार अगर सप्तमेश, द्वितीय, पंचम, नवम, दशम या एकादश भाव में हो और सप्तमेश चन्द्र, बुध या शुक्र हो तो जीवनसाथी व्यापारी होता है.सूर्य, मंगल अथवा शनि सप्तमेश हो और नवमांश में उच्च या स्वराशि में हो तो जीवनसाथी उच्चपद पर कार्य करने वाला होता है.कुण्डली में अगर राहु केतु सप्तम भाव में हो अथवा सप्तमेश षष्टम, अष्टम, द्वादश में हो साथ ही नवमांश कुण्डली में भी कमज़ोर हो तो जीवनसाथी समान्य नौकरी करने वाला होता है.