Sunday, 18 August 2019

दरिद्रता योग

क्या आप जाने हैं की कुंडली से पता चल जाता है की दरिद्रता योग मनुष्य के जीवन में चार चीजों का होना आवश्यक है धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष इनमे दूसरे नम्बर पर अर्थ का मतलब धन को रखा जाता है क्योंकि हमारे जीवन में मूल आवश्यकता धन की होती है खासकर कलयुग में क्योंकि धन के बिना जीवन संघर्षमय बन जाता है हमारे जीवन प्रारब्ध से बंधा हुआ है इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को अलग–अलग अलग आर्थिक स्थिति प्राप्त होती है कुछ लोग जीवन में बहुत उच्च आर्थिक स्थिति और ऐश्वर्य पूर्ण जीवन प्राप्त हो जाता है और कुछ मध्यम स्थिति और कुछ समान्य स्थिति प्राप्त होती है परन्तु कई बार हमें देखने को मिला है कमजोर आर्थिक स्थिति है तो मनुष्य की मूल आवश्यकताएँ भी पूरी नहीं होती हैं और जीवन में दरिद्रता की स्थिति ही रहती है दरिद्रता शास्त्रों में भी जीवन के सबसे बड़े दुःख के रूप में दिखते हैं अब हम बताते हैं की यह दरिद्रता किस कारण मिलता है क्योंकि नवग्रहों का हमारे जन्म समय में जो स्थिति होती है उसके हिसाब से हमें फल प्राप्त होते है हमारी जन्मकुंडली में दूसरा भाव जो होता है वह संचित धन या एकत्रित धन का प्रतिनिधित्व करता है इसलिए इसे धन भाव भी कहा जाता है इससे व्यक्ति के जीवन में धन या पूँजी धन भाव और इसके स्वामी ग्रह पर निर्भर करती है इसके बाद कुंडली का ग्यारहवां भाव देखा जाता है इसे लाभ भाव कहते हैं व्यक्ति को होने वाली निरन्तर आय या धन लाभ ग्यारहवे भाव जे स्वामी पर निर्भर करते हैं। “शुक्र” धन का नैसर्गिक कारक है अतः जब कुंडली यह भाव या स्वामी कमजोर या पाप ग्रह से पीड़ित स्थिति में होते हैं तो व्यक्ति को दरिद्रता का सामना करना पड़ता है और जीवन आर्थिक संघर्ष की स्थिति में रहता है ,जन्म पत्री में कुछ ग्रह ऐसे योग बनाते हैं यदि धनेश बारहवे भाव में हो और शुभ प्रभाव से वंछित हो तो यह योग दरिद्रता उत्पन्न करता है।धनेश का छटे आठवें भाव में होना और षष्ठेश, अष्ठमेश का धन भाव में होना भी दरिद्रता देता है।जब धन भाव में गुरु–चाण्डाल योग, ग्रहण योग, विष योग या अंगारक आदि पाप योग बने हों तो भी व्यक्ति को दरिद्रता का सामना करना पड़ता है।अगर हमारा लाभेश का भी पाप भाव 6, 8, १२ में जाना, नीच राशि में होना या अति पीड़ित होना दरिद्रता देता है अगर शुक्र नीच राशि कन्या में हो और केतु से पीड़ित हो या अष्टम भाव में हो और पूर्ण अस्त हो तो ऐसे में भी मनुष्य दरिद्रता का जीवन या संघर्ष मय जीवन जीता है दूसरा अगर पाप ग्रहों का धन भाव में नीच राशि में बैठना भी दरिद्रता या संघर्ष जीवन यापन करता है जब सूर्य और चन्द्रमाँ परम नीच में हों और नीचभंग आदि ना हो तो भी ऐसे स्थिति आ सकती है अगर काल सर्प योग धन भाव में बने तो भी कई देखने में आया की ऐसी स्थिति में भी गरीबी से भी झूझना पड़ता है जब कुंडली के तीनो शुभ कारक ग्रह लग्नेश,पंचमेश,नवमेश यह भी पीड़ित या कमजोर स्थिति में हों तो भी जीवन में गरीबी आ सकती है 
जो हमे ऊपर लिखा है इन ग्रहों की स्थितियों का वर्णन किया है उनमे व्यक्ति को निश्चित रूप से संघर्ष का सामना तो करना ही पड़ता है लेकिन कभी भी कुंडली में बने किसी एक ही योग को देखकर निष्कर्ष नहीं निकला जाता है यदि कोई पाप योग या उपरोक्त में से कोई बुरा योग बनता है पर साथ में उस पर शुभ प्रभाव या शुभ ग्रह की दृस्टि होने से उसकी तीव्रता कम हो जाती है ऐसे में व्यक्ति संघर्ष करके अपने जीवन को सही स्थिति में ले आता है दरिद्रता की स्थिति तभी बनती है जब कुंडली में बने अधिकांश योग नकारात्मक और सभी शुभकारक ग्रह कमजोर हों। इसमें केमद्रुम योग अगर बने तो यह निश्चित तौर पर धनहीन बना देता है अगर कुछ ऐसा है कुंडली में तो कुछ उपाय से जीवन थोड़ा बहुत सफल बन जाता है यह उपाय करके प्रति दिन “श्रीसूक्त” का पाठ करें।
ॐ शुम शुक्राय नमः का जाप करें और घर में
श्री यन्त्र” की स्थापना करें।घर में तुलसी का पौधा अवश्य लगाएं।घर के ईशान कोण को हमेशा साफ स्वच्छ रखें। 
।।श्री हनुमते नमः।।का जाप करे और श्री यंत्र की पूजा करें और संक्राति को नवग्रह का जाप करवाएं आप को इस योग के फलों में कमी आ जाएगी.

विवाह का समय 💞

विवाह के योग के बारे में जानते हैं कब बनता है विवाह का समय 27, 29, 31, 33, 35 व 37वें वर्ष में यह योग बनते हैं। जिन युवक-युवतियों के विवाह में विलंब हो जाता है, तो उनके ग्रहों की दशा ज्ञात कर, विवाह के योग कब है यह जान सकते हैं जब शनि और गुरु दोनों सप्तम भाव या लग्न को देख रहे तब शादी का योग बनता है सप्तमेश की महादशा-अंतर्दशा या शुक्र-गुरु की महादशा-अंतर्दशा में विवाह का योग बनता है सप्तम भाव में स्थित ग्रह या सप्तमेश के साथ बैठे ग्रह की महादशा-अंतर्दशा में विवाह होना निश्चित होता है लेकिन आजकल युवा या युवतिया पढाई के कारण या घरेलु परेशानियों के कारण से यह योग निकल जाता है जिस कारण विवाह में देरी हो जाती है

Sunday, 31 July 2016

अकस्मात, आत्म हत्या से मृत्यु योग शांतिे उपाय

Accidental, sudden, suicide death Yoga...

प्रश्न: अकस्मात मृत्यु के कौन-कौन से योग हैं?
विस्तार से इनकी व्याख्या करें तथा ऐसी मृत्यु से बचाव के लिए किस प्रकार के उपाय सार्थक हो सकते हैं? मानव शरीर में आत्मबल, बुद्धिबल, मनोबल, शारीरिक बल कार्य करते हैं।
चन्द्र के क्षीण होने से मनुष्य का मनोबल कमजोर हो जाता है, विवेक काम नहीं करता और अनुचित अपघात पाप कर्म कर बैठता है। अमावस्या व एकादशी के बीच तथा पूर्णिमा के आस-पास चन्द्र कलायें क्षीण व बढ़ती हैं इसलिये 60 : ये घटनायें इस समय में होती हैं। तमोगुणी मंगल का अधिकार सिर, एक्सीडेन्ट, आगजनी, हिंसक घटनाओं पर होता है तो शनि का आधिपत्य मृत्यु, फांसी व वात सम्बन्धी रोगों पर होता है। छाया ग्रह राहु-केतु का प्रभाव आकस्मिक घटनाओं तथा पैंर, तलवों पर विशेष रहता है। ग्रहों के दूषित प्रभाव से अल्पायु, दुर्घटना, आत्महत्या, आकस्मिक घटनाओं का जन्म होता है।
आकस्मिक मृत्यु के स्थान का ज्ञान
1- लग्न की महादशा हो और अन्तर्दशा लग्न के शत्रु ग्रह की हो तो मनुष्य की अकस्मात मृत्यु होती है।
2- छठे स्थान के स्वामी का सम्बन्ध मंगल से हो तो अकस्मात आपरेशन से मृत्यु हो।
3- लग्न से तृतीय स्थान में या कारक ग्रह से तृतीय स्थान में सूर्य हो तो राज्य के कारण मृत्यु हो।
4- यदि शनि चर व चर राशि के नवांश में हो तो दूर देश में मृत्यु हो।
5- अष्टम में स्थिर राशि हो उस राशि का स्वामी स्थिर राशि में हो तो गृह स्थान में जातक की मृत्यु होती है। 6- द्विस्वभाव राशि अष्टम स्थान मं हो तथा उसका स्वामी भी द्विस्वभाव राशिगत हो तो पथ (रास्ते) में मृत्यु हो।
7- तीन ग्रह एक राशि में बैठे हों तो जातक सहस्र पद से युक्त पवित्र स्थान गंगा के समीप मरता है।
8- लग्न से 22 वें द्रेष्काण का स्वामी या अष्टमभाव का स्वामी नवम भाव में चन्द्र हो तो काशीतीर्थ बुध$शुक्र हो तो द्वारिका में मृत्यु हो।
9- अष्टम भाव में गुरु चाहे किसी राशि में हो व्यक्ति की मृत्यु बुरी हालत में होती है।
मृत्यु फांसी के द्वारा
1- द्वितीयेश और अष्टमेश राहु व केतु के साथ 6, 8, 12 वें भाव में हो। सारे ग्रह मेष, वृष, मिथुन राशि में हो।
2- चतुर्थ स्थान में शनि हो दशम भाव में क्षीण चन्द्रमा के साथ मंगल शनि बैठे हों
3- अष्टम भाव बुध और शनि स्थित हो तो फांसी से मृत्यु हो।
4- क्षीण चन्द्रमा पाप ग्रह के साथ 9, 5, 11 वे भाव में हो।
5- शनि लग्न में हो और उस पर शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तथा सूर्य, राहु क्षीण चन्द्रमा युत हों तो जातक की गोली या छुरे से मृत्यु अथवा हत्या हो।
6- नवमांश लग्न में सप्तमेश राहु, केतु से युत 6, 8, 12 वें भाव मं स्थित हों तो आत्महत्या करता है।
7- चैथे व दसवें या त्रिकोण भाव में अशुभ ग्रह हो या अष्टमेश लग्न में मंगल से युत हो तो फांसी से मृत्यु होती है
8- क्षीण चन्द्रमा पाप ग्रह के साथ पंचम या एकादश स्थान में हो तो सूली से मृत्यु होती है।
दुर्घटना से मृत्यु योग
1- चतुर्थेश, षष्ठेश व अष्टमेश से सम्बन्ध हो तो मृत्यु वाहन दुर्घटना मं हो। 2- यदि अष्टम भाव में चन्द्र, मंगल, शनि हो तो मृत्यु हथियार द्वारा हो।
3- चन्द्र सूर्य मंगल शनि 8, 5 तथा 9 में हो तो मृत्यु ऊँचाई से गिरने समुद्र, तूफान या वज्रपात से हो।
4- अष्टमेश तथा अष्टम, षष्ठ तथा षष्ठेश और मंगल का इन सबसे सम्बन्ध हो तो मृत्यु शत्रु द्वारा होती है।
5- अष्टमेश एवं द्वादशेश में भाव परिवर्तन हो, इन पर मंगल की दृष्टि हो तो अकाल मौत हो। जन्म विषघटिका में होने से विष, अग्नि क्रूरजीव से मृत्यु हो।
6- जन्म लग्न से दशम भाव में सूर्य चतुर्थ भाव में मंगल हो तो मृत्यु वाहन दुर्घटना तथा सवारी से गिरने से होती है।
7- मंगल और सूर्य सप्तम भाव में, शनि अष्टम भाव में क्षीण चन्द्र के साथ हो तो पक्षी के कारण दुर्घटना में मृत्यु हो।
8- सूर्य, मंगल, केतु की यति हो जिस पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो अग्नि दुर्घटना में मृत्यु हो। चन्द्र मेष$ वृश्चिक राशि में हो तो पाप ग्रह की दृष्टि से अग्नि अस्त्र से मृत्यु हो। 9- द्विस्वभाव राशि लग्न में सूर्य+चन्द्र हो तो जातक की मृत्यु जल में डूबने से हो।
10- लग्नेश और अष्टमेश कमजोर हो, मंगल षष्ठेश से युत हो तो मृत्यु युद्ध में हो। द्वादश भाव में मंगल अष्टम भाव में शनि से हथियार द्वारा हत्या हो।
11- यदि नंवाश लग्न में सप्तमेश शनि युत हो 6, 8, 12 में हो जहर खाने से मृत्यु हो ।
12- चन्द्र मंगल अष्टमस्थ हो तो सर्पदंश से मृत्यु होती है।
13- लग्नेश अष्टमेश और सप्तमेश साथ बैठे हों तो जातक स्त्री के साथ मरता है।
आत्म हत्या से मृत्यु योग
1- लग्न व सप्तम भाव में नीच ग्रह हों
2- लग्नेश व अष्टमेश का सम्बन्ध व्ययेश से हो। 3- अष्टमेश जल तत्व हो तो जल में डूबने से, अग्नि तत्व हो तो जलकर, वायु तत्व हो तो तूफान व बज्रपात से अपघात हो । 4- कर्क राशि का मंगल अष्टम भाव में पानी में डूबकर आत्मघात कराता है 5- यदि अष्टम भाव में एक या अधिक अशुभ ग्रह हो तो जातक हत्या, अपघात, दुर्घटना, बीमारी से मरता है।
ग्रहों के अनुसार स्त्री पुरूष के आकस्मिक मृत्यु योग
1- चतुर्थ भाव में सूर्य और मंगल स्थित हों, शनि दशम भाव मं स्थित हो तो शूल से मृत्यु तुल्य कष्ट तथा अपेंडिक्स रोग से मौत हो सकती है। 2- द्वितीय स्थान में शनि, चतुर्थ स्थान में चन्द्र, दशम स्थान में मंगल हो तो घाव में सेप्टिक से मृत्यु होती है। 3- दशम स्थान में सूर्य और चतुर्थ स्थान में मंगल स्थित हो तो कार, बस, वाहन या पत्थर लगने से मृत्यु तुल्य कष्ट होता है। 4- शनि कर्क और चन्द्रमा मकर राशिगत हो तो जल से अथवा जलोदर से मृत्यु हो। 5- शनि चतुर्थस्थ, चन्द्रमा सप्तमस्थ और मंगल दशमस्थ हो तो कुएं में गिरने से मृत्यु होती है 6- क्षीण चन्द्रमा अष्टम स्थान में हो उसके साथ मं$रा$शनि हो तो पिशाचादि दोष से मृत्यु हो।
7- जातक का जन्म विष घटिका में होने से उसकी मृत्यु विष, अग्नि तथा क्रूर जीव से होती है।
8- द्वितीय में शनि, चतुर्थ में चन्द्र और दशम में मंगल हो तो मुख मं कृमिरोग से मृत्यु होती है।
9- शुभ ग्रह दशम, चतुर्थ, अष्टम, लग्न में हो और पाप ग्रह से दृष्ट हो तो बर्छी की मार से मृत्यु हो।
10- यदि मंगल नवमस्थ और शनि, सूर्य राहु एकत्र हो, शुभ ग्रह दृष्ट न हो तो बाण से मृत्यु हो 11- अष्टम भाव में चन्द्र के साथ मंगल, शनि, राहु हो तो मृत्यु मिर्गी से हो।
12- नवम भाव में बुध शुक्र हो तो हृदय रोग से मृत्यु होती है।
13- अष्टम शुक्र अशुभ ग्रह से दृष्ट हो तो मृत्यु गठिया या मधुमेह से होती है
14- स्त्री की जन्म कुण्डली सूर्य, चन्द्रमा मेष राशि या वृश्चिक राशिगत होकर पापी ग्रहों के बीच हो तो महिला शस्त्र व अग्नि से अकाल मृत्यु को प्राप्त होती है।
15- स्त्री की जन्म कुण्डली में सूर्य एवं चन्द्रमा लग्न से तृतीय, षष्ठम, नवम, द्वादश भाव में स्थित हो तो तथा पाप ग्रहों की युति व दृष्टि हो तो महिला फंासी लगाकर या जल में कूद कर आत्म हत्या करती है।
16- द्वितीय भाव में राहु, सप्तम भाव में मंगल हो तो महिला की विषाक्त भोजन से मृत्यु हो
17- सूर्य एवं मंगल चतुर्थ भाव अथवा दशम भाव में स्थित हो तो स्त्री पहाड़ से गिर कर मृत्यु को प्राप्त होती है। 18- दशमेश शनि की व्ययेश एवं सप्तमेश मंगल पर पूर्ण दृष्टि से महिला की डिप्रेशन से मृत्यु हो।
19- पंचमेश नीच राशिगत होकर शत्रु ग्रह शुक्र एवं शनि से दृष्ट हो तो प्रसव के समय मृत्यु हो ।
20- महिला की जन्मकुण्डली में मंगल द्वितीय भाव में हो, चन्द्रमा सप्तम भाव में हो, शनि चतुर्थ भाव में हो तो स्त्री कुएं, बाबड़ी, तालाब में कूद कर मृत्यु को प्राप्त होती है।
लग्नेश के नवांश से मृत्यु, रोग अनुमान
1- मेष नवांश हो तो ज्वर, ताप जठराग्नि तथा पित्तदोष से मृत्यु हो
2- वृष नवांश हो तो दमा, शूल त्रिदोषादि, ऐपेंडिसाइटिस से मृत्यु हो।
3- मिथुन नवांश हो तो सिर वेदना,
4- कर्क नवांश वात रोग व उन्माद से मृत्यु हो।
5- सिंह नवांश हो तो विस्फोटकादि, घाव, विष, शस्त्राघात और ज्वर से मृत्यु।
6- कन्या नवांश हो तो गुह्य रोग, जठराग्नि विकार से मृत्यु हो।
7- तुला नवांश में शोक, बुद्धि दोष, चतुष्पद के आघात से मृत्यु हो।
8- वृश्चिक नवांश में पत्थर अथवा शस्त्र चोट, पाण्डु ग्रहणी वेग से।
9- धनु नवांश में गठिया, विष शस्त्राघात से मृत्यु हो।
10- मकर नवांश में व्याघ्र, शेर, पशुओं से घात, शूल, अरुचि रोग से मृत्यु।
11- कुंभ नवांश में स्त्री से विष पान श्वांस तथा ज्वर से मृत्यु हो।
12- मीन नवांश में जल से तथा संग्रहणी रोग से मृत्यु हो।
गुलिक से मृत्युकारी रोग अनुमान
1- गुलिक नवांश से सप्तम शुभग्रह हो तो मृत्यु सुखकारी होगी।
2- गुलिक नवांश से सप्तम स्थान में मंगल हो तो जातक की युद्ध लड़ाई में मृत्यु होगी।
3- गुलिक नवांश से सप्तम स्थान में शनि हो तो मृत्यु चोर, दानव, सर्पदंश से होगी।
4- गुलिक नवांश से सप्तम स्थान में सूर्य हो तो राजकीय तथा जलजीवांे से मृत्यु।
अरिष्ट महादशा व दशान्तर में मृत्यु
1- अष्टमेश भाव 6, 8, 12 मं हो तो अष्टमेश की दशा-अन्तर्दशा में और दशमेश के बाद के ग्रह अन्तर्दशा में मृत्यु होती है।
2- कर्क, वृश्चिक, मीन के अन्तिम भाग ऋक्ष संधि कहलाते हैं। ऋक्ष सन्धि ग्रह की दशा मृत्युकारी होती है।
3- जिस महादशा में जन्म हो महादशा से तीसरा, पांचवां, सातवें भाव की महादशा यदि नीच, अस्त, तथा शत्रु ग्रह की हो तो मृत्यु होती है।
4- द्वादशेश की महादशा में द्वितीयेश का अन्तर आता है अथवा द्वितीयेश दशा में द्वादश अन्तर में अनिष्टकारी मृत्यु तुल्य होता है।
5- छिद्र ग्रह सात होते हैं
1. अष्टमेश, 2. अष्टमस्थ ग्रह, 3. अष्टमदर्शी ग्रह, 4. लग्न से 22 वां द्रेष्काण अर्थात अष्टम स्थान का द्रेष्काण जिसे रवर कहते हैं उस द्रेष्काण स्वामी, 5. अष्टमेश के साथ वाला ग्रह, 6. चन्द्र नवांश से 64 वां नवांशपति, 7. अष्टमेश का अतिशत्रु ग्रह।
इन सात में से सबसे बली ग्रह की महादशा कष्टदायक व मृत्युकारी होगी।
उपाय
1. आकस्मिक मृत्यु के बचाव के लिए ‪#‎विधि_पूर्वक‬ महामृत्युंजय मंत्र का जप करें। निर्धारित जप रुद्राक्ष माला से पूर्वी मुख होकर करें।
2. वाहन चलाते समय मादक वस्तुओं का सेवन न करें तथा अभक्ष्य वस्तुओं का सेवन न करें अन्यथा पिशाची बाधा हावी होगी वैदिक गायत्री मंत्र कैसेट चालू रखें।
3. गोचर वक्री कनिष्ठ ग्रहों की दशा में वाहन तेजी से न चलायें।
4. मंगल का वाहन दुर्घटना निवारक प्रतिष्टित यंत्र वाहन में लगायें, उसकी विधिवत पूजा करें।
5. नवग्रह यंत्र का विधिविधान पूर्वक प्रतिष्ठा कर देव स्थान में पूजा करें।
6. सूर्य कलाक्षीण हो तो आदित्य हृदय स्तोत्र, चन्द्र की कला क्षीण हो तो चन्द्रशेखर स्तोत्र, मंगल की कला क्षीण हो तो हनुमान स्तोत्र, शनि कला क्षीण हो तो दशरथकृत शनि स्तोत्र का पाठ करें। राहु की कला क्षीण हो तो भैरवाष्टक व गणेश स्तोत्र का पाठ करें।

Monday, 27 June 2016

जन्म कुंडली में विदेश यात्रा के योग

कुंडली में बहुत से शुभ - अशुभ योगो के साथ विदेश यात्रा के योग भी मौजूद होते हैं. जब अनुकूल ग्रहों की दशा/अन्तर्दशा कुंडली में चलती है तब व्यक्ति विदेश जाता है. वर्तमान समय में विदेश जाना सम्मान की बात भी समझी जाने लगी है और अधिक पैसे की चाहत में भी लोग विदेश यात्रा करने लगे हैं. बहुत बार व्यक्ति विदेश जाने की इच्छा तो रखता है लेकिन जा नहीं पाता है. आइए उन योगों के बारे में जाने जिनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि इस कुंडली में “विदेश जाने के योग” बनते हैं. उसके बाद उन दशाओं की भी बात करेगें, जिनकी दशा में व्यक्ति विदेश जा सकता है.

कुंडली के अनुसार विदेश यात्रा के योग
जन्म कुंडली में सूर्य लग्न में स्थित हो तब व्यक्ति विदेश यात्रा करने की संभावना रखता है.
कुंडली में बुध आठवें भाव में स्थित हो.
कुंडली में शनि बारहवें भाव में स्थित हो तब भी विदेश यात्रा के योग बनते हैं.
लग्नेश बारहवें भाव में स्थित है तब भी विदेश यात्रा के योग बनते हैं.
जन्म कुंडली में दशमेश और उसका नवांशेश दोनो ही चर राशियों में स्थित हो.
लग्नेश, कुंडली में सप्तम भाव में चर राशि में स्थित हो तब भी विदेश यात्रा के योग बनते हैं.
दशमेश, नवम भाव में चर राशि में स्थित हो तब भी विदेश यात्रा के योग बनते हैं.
सप्तमेश अगर नवम भाव में स्थित है तब भी व्यक्ति विदेश जा सकता है.
कुंडली में बृहस्पति चतुर्थ, छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित है तब भी विदेश यात्रा के योग होते है.
द्वादशेश और नवमेश में राशि परिवर्तन होने से भी व्यक्ति विदेश यात्रा करता है.
जन्म कुंडली में बारहवाँ भाव या उसका स्वामी अष्टमेश से दृष्ट हो.
कुंडली में चंद्रमा ग्यारहवें या बारहवें भाव में स्थित हो तब भी विदेश यात्रा के योग बनते हैं.
शुक्र जन्म कुंडली के छठे, सातवें या आठवें भाव में स्थित हो.
राहु कुंडली के पहले, सातवें या आठवें भाव में स्थित हो.
छठे भाव का स्वामी कुंडली में बारहवें भाव में स्थित हो.
दशम भाव व दशमेश दोनो ही चर राशियों में स्थित हों.
लग्नेश और चंद्र राशिश दोनो ही चर राशियों में स्थित हो तब भी व्यक्ति विदेश यात्रा करता है.
बारहवें भाव का स्वामी नवम भाव में स्थित होने पर भी विदेश यात्रा होती है.
लग्नेश और नवमेश दोनो में आपस में राशि परिवर्तन होने पर भी विदेश यात्रा होती है.
नवमेश व द्वादशेश दोनो ही चर राशियों में स्थित हो तब भी व्यक्ति विदेश यात्रा करता है.
यदि कुंडली के चतुर्थ भाव में बारहवें भाव का स्वामी बैठा हो तब व्यक्ति विदेश में शिक्षा ग्रहण करता है.

विदेश यात्रा का समय | Period For Foreign Travel
जन्म कुंडली में यदि उच्च के सूर्य की दशा चल रही हो तब व्यक्ति के विदेश जाने के योग बनते हैं.
यदि उच्च के चंद्रमा या उच्च के ही मंगल की भी दशा चल रही हो तब भी व्यक्ति विदेश यात्रा करता है.
उच्च के बृहस्पति की दशा में भी व्यक्ति की विदेश यात्रा होती है.
यदि मंगल बली होकर लग्न में स्थित है या सूर्य से संबंधित है तब मंगल की दशा में भी विदेश यात्रा होने की संभावना बनती है.
कुंडली में यदि नीच के बुध की दशा चल रही है तब भी विदेश यात्रा हो सकती है.
बृहस्पति की दशा चल रही हो और वह सातवें या बारहवें भाव में चर राशि में स्थित हो.
शुक्र की दशा चल रही हो और वह एक पाप ग्रह के साथ सप्तम भाव में स्थित हो.
शनि की दशा चल रही हो और शनि बारहवें भाव में या उच्च नवांश में स्थित हो.
राहु की दशा कुंडली में चल रही हो और राहु कुंडली में तीसरे, सातवें, नवम या दशम भाव में स्थित हो.
जन्म कुंडली में सूर्य की महादशा में केतु की अन्तर्दशा चल रही हो तब भी विदेश जाने की संभावना बनती है.
यदि केतु की महादशा में सूर्य की अन्तर्दशा चल रही हो और कुंडली में सूर्य, केतु से छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित हो.
केतु की महादशा में चंद्रमा की अन्तर्दशा चल रही हो और केतु से चंद्रमा केन्द्र/त्रिकोण या ग्यारहवें भाव में स्थित हो.
कुंडली में शुक्र की महादशा में बृहस्पति की अन्तर्दशा चल रही हो तब भी विदेश यात्रा की संभावना बनती है.
कुंडली में राहु की महादशा में सूर्य की अन्तर्दशा चल रही हो और राहु से सूर्य केन्द्र/त्रिकोण या ग्यारहवें भाव का स्वामी हो.
शनि की महादशा में बृहस्पति की अन्तर्दशा चल रही हो और शनि से बृहस्पति केन्द्र/त्रिकोण या दूसरे या ग्यारहवें भाव का स्वामी हो.
बुध की महादशा में शनि की अन्तर्दशा चल रही हो और बुध से शनि छठे, आठवें, या बारहवें भाव में स्थित हो.
शनि की महादशा में केतु की अन्तर्दशा चल रही हो और केतु की लग्नेश से युति हो.

जानें जन्म का पाया


च्चे का जन्म होते ही बड़े-बुजुर्ग यह जानने को उत्सुक रहते हैं कि बच्चा किस पाए के साथ घर में आया है। कुंडली के बारह स्थानों को चार पायों में बाँटा गया है और इन्हें चार धातुओं-सोना, चाँदी, ताँबा और लोहे का नाम दिया गया है।
जन्म के समय चंद्रमा जिस स्थान पर होता है (कुंडली में) उसके अनुसार पाया जाना जाता है।
1. सोने का पाया : जब चंद्रमा पहले, छठे या ग्यारहवें में हो तो स्वर्ण पाद का जन्म समझा जाता है। श्रेष्ठता क्रम में यह तीसरे नंबर पर आता है।
2. चाँदी का पाया : चंद्रमा दूसरे, पाँचवे या नववें भाव में हो तो चाँदी के पाए का जन्म माना जाता है। श्रेष्ठता क्रम में यह सर्वोत्तम माना जाता है।
3. ताँबे का पाया : चंद्रमा तीसरे, सातवें या दसवें स्थान में हो तो ताँबे का पाया होता है। श्रेष्ठता क्रम में यह दूसरे क्रम पर है।
4. लोहे का पाया : जब चंद्रमा चौथे, आठवें या बारहवें भाव में हो तो बच्चे का जन्म लोहे के पाए का होता है। यह पाया शुभ नहीं माना जाता।
वास्तव में चंद्रमा 4, 8, 12 में स्वास्थ्य हानि करता है इसलिए कदाचित लोहे के पाए को अशुभ माना गया है।

Monday, 13 June 2016

गोमती चक्र क्या है...

Gomti Chakra

गोमती चक्र कम कीमत वाला एक ऐसा पत्थर है जो गोमती नदी मे मिलता है। विभिन्न तांत्रिक कार्यो तथा असाध्य रोगों में इसका प्रयोग होता है। असाध्य रोगों को दुर करने तथा मानसिक शान्ति प्राप्त करने के लिये है।

  • लगभग 10 गोमती चक्र लेकर रात को पानी में डाल देना चाहिऐ। सुबह उस पानी को पी जाना चाहिऐ । इससे पेट संबंध के विभिन्न रोग दुर होते है।
  • धन लाभ के लिऐ 11 गोमती चक्र अपने पुजा स्थान मे रखना चाहिऐ उनके सामने ॐ श्री नमः का जाप करना चाहिऐ। इससे आप जो भी कार्य करेंगे उसमे आपका मन लगेगा और सफलता प्राप्त होगी । किसी भी कार्य को उत्साह के साथ करने की प्रेरणा मिलेगी।
  • गोमती चक्रों को यदि चांदी अथवा किसी अन्य धातु की डिब्बी में सिंदुर तथा अक्षत डालकर रखें तो ये शीघ्र फलदायक होते है। होली, दीवाली, तथा नवरात्रों आदि पर गोमती चक्रों की विशेष पुजा की जाति है।
  • अन्य विभिन्न मुहुर्तों के अवसर पर भी इनकी पुजा लाभदायक मानी जाती है। सर्वसिद्धि योग तथा रावेपुष्य योग आदि के समय पुजा करने पर ये बहुत फलदायक है।
  • गोमती चक्र की पूजा :  होली, दिवाली और नव रात्रों आदिपर गोमती चक्र की विशेष पूजा होती है। सर्वसिद्धि योग, अमृत योग और रविपुष्य योग आदि विभिन्न मुहूर्तों पर गोमती चक्र की पूजा बहुत फलदायक होती है। धन लाभ के लिए ११ गोमती चक्र अपने पूजा स्थान में रखें तथा उनके सामने ॐ श्रींनमः का जाप करें।

  • ऊपरी बाधाओं से मुक्ति दिलाए गोमती चक्र : गोमती चक्र कम कीमत वाला एक ऐसा पत्थर है जो गोमती नदी में मिलता है।
  • विभिन्न तांत्रिक कार्यों तथा असाध्य रोगों में इसका प्रयोग होता है। इसका तांत्रिक उपयोग बहुत ही सरल होता है। किसी भी प्रकार की समस्या के निदान के लिए यह बहुत ही कारगर उपाय है
  1.   यदि घर में भूत-प्रेतों का उपद्रव हो तो दो गोमती चक्र लेकर घर के मुखिया के ऊपर घुमाकर आग में डाल दें तो घर से भूत-प्रेत का उपद्रव समाप्त हो जाता है।
  2.  यदि घर में बीमारी हो या किसी का रोग शांत नहीं हो रहा हो तो एक गोमती चक्र लेकर उसे चांदी में पिरोकर रोगी के पलंग के पाये पर बांध दें। उसी दिन से रोगी को आराम मिलने लगता है।
  3. प्रमोशन नहीं हो रहा हो तो एक गोमती चक्र लेकर शिव मंदिर में शिवलिंग पर चढ़ा दें और सच्चे ह्रदय से प्रार्थना करें। निश्चय ही प्रमोशन के रास्ते खुल जाएंगे।
  4. व्यापार वृद्धि के लिए दो गोमती चक्र लेकर उसे बांधकर ऊपर चौखट पर लटका दें और ग्राहक उसके नीचे से निकले तो निश्चय ही व्यापार में वृद्धि होती है।
  5. यदि इस गोमती चक्र को लाल सिंदूर के डिब्बी में घर में रखें तो घर में सुख-शांति बनी रहती है।
प्रमोशन के लिए टोटका---
प्रमोशन के लिए प्रत्येक सोमवार को शिवजी पर एक गोमती चक्र चढाये।

व्यापार बढ़ाने के लिए कुछ टोटके----
गोमती चक्र लक्ष्मी का स्वरुप है। ११ गोमती चक्र एक लाल पोटली में बाँध कर दूकान में रखने से व्यापार अच्छा चलेगा।



गोमती चक्र----
यदि बीमार व्यक्ति ठीक नही हो पा रहा हो अथवा दवाइया नही लग रही हो तो उसके सिरहाने पाँच गोमती चक्र "ॐ जूं सः" मंत्र से अभिमंत्रित करके रखे , रोगी को शीघ्र ही स्वाथ्य लाभ होगा।

Saturday, 12 December 2015

कुण्डली से विवाह का विचार (Analysing marriage through Horoscope)

कर्म के अनुसार ईश्वर सबकी जोड़ियां बनाता है.जब जिससे विवाह होना होता है वह होकर रहता है.लेकिन जब वर और कन्या विवाह योग्य होते हैं तो माता पिता उनकी शादी को लेकर चिंतित रहते हैं
तो वर कन्या भी इस बात को लेकर उत्सुक होते हैं कि उनका विवाह कब, किससे और कहां होगा.

 




दिशा और स्थान में विवाह
आमतौर पर कन्या के लिए वर तलाश करते समय काफी परेशानियों का सामना करना होता है.अगर यह पता हो कि विवाह किस दिशा और स्थान में होना है तो वर तलाश करना अभिभावक के लिए आसान हो जाता है.कुण्डली में अगर सप्तम स्थान में वृष, कुम्भ या फिर वृश्चिक राशि है तो यह समझना चाहिए कि व्यक्ति का जीवनसाथी माता पिता के घर से लगभग 70-75 किलोमीटर दूर है.मिथुन, कन्या, धनु या फिर मीन राशि सप्तम भाव में है तो जीवनसाथी की तलाश के लिए लगभग 125 किलोमीटर तक जाना पड़ सकता है.सप्तम भाव में मेष, कर्क, तुला या मकर राशि होने पर जीवनसाथी 200 किलोमीटर और उससे दूर होता है.

सप्तम भाव में जो ग्रह स्थित होते हैं उनमें से जो बलवान होता है उस ग्रह की दिशा मे व्यक्ति का विवाह होता है.सप्तम भाव अगर खाली है तो जिस ग्रह की दृष्टि इस भाव पर अधिक प्रभावशाली हो उस ग्रह की दिशा में विवाह होना समझना चाहिए.अगर किसी ग्रह के द्वारा सप्तम भाव दृष्ट नहीं हो तब उस भाव में स्थित राशि अथवा नवांश राशि की दिशा में विवाह होने की संभावना प्रबल होती है.

विवाह किससे
ज्योतिष विधान के अनुसार कुण्डली में व्यक्ति के लग्नेश या सप्तमेश में जो उच्च या नीच की राशि होती है उसी के अनुसार चन्द्र या लग्न राशि का जीवनसाथी मिलता है.चन्द्र राशि, स्थिर राशि और इनके नवमांश के पंचम या नवम स्थान में जो बलशाली राशि होती है वयक्ति का जीवन साथी उसी राशि का होता है.

जीवनसाथी की आर्थिक स्थिति
जीवनसाथी की आर्थिक स्थिति का विचार करते समय अगर धनेश की दृष्टि सप्तम भाव पर हो या फिर सप्तमेश धन भाव को देख रहा हो तो यह इस बात का संकेत समझना चाहिए कि जीवनसाथी धनवान होगा.सप्तमेश जन्मपत्री में चतुर्थ, पंचम, नवम अथवा दशम भाव में हाने पर विवाह सुखी सम्पन्न एवं धनवान परिवार में होता है.सप्तमेश अगर द्वितीयेश, लाभेश, चतुर्थेश या कर्मेश के साथ प्रथम, चतुर्थ, सप्तम या दशम भाव में युति बनता है तो विवाह धनिक कुल में होना संभव होता है.

जीवनसाथी की आजीविका
जन्म कुण्डली में अगर चतुर्थ भाव का स्वामी द्वितीय अथवा द्वादश भाव में होता है तो नौकरी करने वाला जीवनसाथी मिलता है.चतुर्थ भाव का स्वामी केन्द्रभाव के स्वामी के साथ युति बनता है तो जीवनसाथी व्यवसायी होता है.इसी प्रकार अगर सप्तमेश, द्वितीय, पंचम, नवम, दशम या एकादश भाव में हो और सप्तमेश चन्द्र, बुध या शुक्र हो तो जीवनसाथी व्यापारी होता है.सूर्य, मंगल अथवा शनि सप्तमेश हो और नवमांश में उच्च या स्वराशि में हो तो जीवनसाथी उच्चपद पर कार्य करने वाला होता है.कुण्डली में अगर राहु केतु सप्तम भाव में हो अथवा सप्तमेश षष्टम, अष्टम, द्वादश में हो साथ ही नवमांश कुण्डली में भी कमज़ोर हो तो जीवनसाथी समान्य नौकरी करने वाला होता है.