क्या आप जाने हैं की कुंडली से पता चल जाता है की दरिद्रता योग मनुष्य के जीवन में चार चीजों का होना आवश्यक है धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष इनमे दूसरे नम्बर पर अर्थ का मतलब धन को रखा जाता है क्योंकि हमारे जीवन में मूल आवश्यकता धन की होती है खासकर कलयुग में क्योंकि धन के बिना जीवन संघर्षमय बन जाता है हमारे जीवन प्रारब्ध से बंधा हुआ है इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को अलग–अलग अलग आर्थिक स्थिति प्राप्त होती है कुछ लोग जीवन में बहुत उच्च आर्थिक स्थिति और ऐश्वर्य पूर्ण जीवन प्राप्त हो जाता है और कुछ मध्यम स्थिति और कुछ समान्य स्थिति प्राप्त होती है परन्तु कई बार हमें देखने को मिला है कमजोर आर्थिक स्थिति है तो मनुष्य की मूल आवश्यकताएँ भी पूरी नहीं होती हैं और जीवन में दरिद्रता की स्थिति ही रहती है दरिद्रता शास्त्रों में भी जीवन के सबसे बड़े दुःख के रूप में दिखते हैं अब हम बताते हैं की यह दरिद्रता किस कारण मिलता है क्योंकि नवग्रहों का हमारे जन्म समय में जो स्थिति होती है उसके हिसाब से हमें फल प्राप्त होते है हमारी जन्मकुंडली में दूसरा भाव जो होता है वह संचित धन या एकत्रित धन का प्रतिनिधित्व करता है इसलिए इसे धन भाव भी कहा जाता है इससे व्यक्ति के जीवन में धन या पूँजी धन भाव और इसके स्वामी ग्रह पर निर्भर करती है इसके बाद कुंडली का ग्यारहवां भाव देखा जाता है इसे लाभ भाव कहते हैं व्यक्ति को होने वाली निरन्तर आय या धन लाभ ग्यारहवे भाव जे स्वामी पर निर्भर करते हैं। “शुक्र” धन का नैसर्गिक कारक है अतः जब कुंडली यह भाव या स्वामी कमजोर या पाप ग्रह से पीड़ित स्थिति में होते हैं तो व्यक्ति को दरिद्रता का सामना करना पड़ता है और जीवन आर्थिक संघर्ष की स्थिति में रहता है ,जन्म पत्री में कुछ ग्रह ऐसे योग बनाते हैं यदि धनेश बारहवे भाव में हो और शुभ प्रभाव से वंछित हो तो यह योग दरिद्रता उत्पन्न करता है।धनेश का छटे आठवें भाव में होना और षष्ठेश, अष्ठमेश का धन भाव में होना भी दरिद्रता देता है।जब धन भाव में गुरु–चाण्डाल योग, ग्रहण योग, विष योग या अंगारक आदि पाप योग बने हों तो भी व्यक्ति को दरिद्रता का सामना करना पड़ता है।अगर हमारा लाभेश का भी पाप भाव 6, 8, १२ में जाना, नीच राशि में होना या अति पीड़ित होना दरिद्रता देता है अगर शुक्र नीच राशि कन्या में हो और केतु से पीड़ित हो या अष्टम भाव में हो और पूर्ण अस्त हो तो ऐसे में भी मनुष्य दरिद्रता का जीवन या संघर्ष मय जीवन जीता है दूसरा अगर पाप ग्रहों का धन भाव में नीच राशि में बैठना भी दरिद्रता या संघर्ष जीवन यापन करता है जब सूर्य और चन्द्रमाँ परम नीच में हों और नीचभंग आदि ना हो तो भी ऐसे स्थिति आ सकती है अगर काल सर्प योग धन भाव में बने तो भी कई देखने में आया की ऐसी स्थिति में भी गरीबी से भी झूझना पड़ता है जब कुंडली के तीनो शुभ कारक ग्रह लग्नेश,पंचमेश,नवमेश यह भी पीड़ित या कमजोर स्थिति में हों तो भी जीवन में गरीबी आ सकती है
जो हमे ऊपर लिखा है इन ग्रहों की स्थितियों का वर्णन किया है उनमे व्यक्ति को निश्चित रूप से संघर्ष का सामना तो करना ही पड़ता है लेकिन कभी भी कुंडली में बने किसी एक ही योग को देखकर निष्कर्ष नहीं निकला जाता है यदि कोई पाप योग या उपरोक्त में से कोई बुरा योग बनता है पर साथ में उस पर शुभ प्रभाव या शुभ ग्रह की दृस्टि होने से उसकी तीव्रता कम हो जाती है ऐसे में व्यक्ति संघर्ष करके अपने जीवन को सही स्थिति में ले आता है दरिद्रता की स्थिति तभी बनती है जब कुंडली में बने अधिकांश योग नकारात्मक और सभी शुभकारक ग्रह कमजोर हों। इसमें केमद्रुम योग अगर बने तो यह निश्चित तौर पर धनहीन बना देता है अगर कुछ ऐसा है कुंडली में तो कुछ उपाय से जीवन थोड़ा बहुत सफल बन जाता है यह उपाय करके प्रति दिन “श्रीसूक्त” का पाठ करें।
ॐ शुम शुक्राय नमः का जाप करें और घर में
श्री यन्त्र” की स्थापना करें।घर में तुलसी का पौधा अवश्य लगाएं।घर के ईशान कोण को हमेशा साफ स्वच्छ रखें।
।।श्री हनुमते नमः।।का जाप करे और श्री यंत्र की पूजा करें और संक्राति को नवग्रह का जाप करवाएं आप को इस योग के फलों में कमी आ जाएगी.
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