Saturday, 12 December 2015

कुण्डली से विवाह का विचार (Analysing marriage through Horoscope)

कर्म के अनुसार ईश्वर सबकी जोड़ियां बनाता है.जब जिससे विवाह होना होता है वह होकर रहता है.लेकिन जब वर और कन्या विवाह योग्य होते हैं तो माता पिता उनकी शादी को लेकर चिंतित रहते हैं
तो वर कन्या भी इस बात को लेकर उत्सुक होते हैं कि उनका विवाह कब, किससे और कहां होगा.

 




दिशा और स्थान में विवाह
आमतौर पर कन्या के लिए वर तलाश करते समय काफी परेशानियों का सामना करना होता है.अगर यह पता हो कि विवाह किस दिशा और स्थान में होना है तो वर तलाश करना अभिभावक के लिए आसान हो जाता है.कुण्डली में अगर सप्तम स्थान में वृष, कुम्भ या फिर वृश्चिक राशि है तो यह समझना चाहिए कि व्यक्ति का जीवनसाथी माता पिता के घर से लगभग 70-75 किलोमीटर दूर है.मिथुन, कन्या, धनु या फिर मीन राशि सप्तम भाव में है तो जीवनसाथी की तलाश के लिए लगभग 125 किलोमीटर तक जाना पड़ सकता है.सप्तम भाव में मेष, कर्क, तुला या मकर राशि होने पर जीवनसाथी 200 किलोमीटर और उससे दूर होता है.

सप्तम भाव में जो ग्रह स्थित होते हैं उनमें से जो बलवान होता है उस ग्रह की दिशा मे व्यक्ति का विवाह होता है.सप्तम भाव अगर खाली है तो जिस ग्रह की दृष्टि इस भाव पर अधिक प्रभावशाली हो उस ग्रह की दिशा में विवाह होना समझना चाहिए.अगर किसी ग्रह के द्वारा सप्तम भाव दृष्ट नहीं हो तब उस भाव में स्थित राशि अथवा नवांश राशि की दिशा में विवाह होने की संभावना प्रबल होती है.

विवाह किससे
ज्योतिष विधान के अनुसार कुण्डली में व्यक्ति के लग्नेश या सप्तमेश में जो उच्च या नीच की राशि होती है उसी के अनुसार चन्द्र या लग्न राशि का जीवनसाथी मिलता है.चन्द्र राशि, स्थिर राशि और इनके नवमांश के पंचम या नवम स्थान में जो बलशाली राशि होती है वयक्ति का जीवन साथी उसी राशि का होता है.

जीवनसाथी की आर्थिक स्थिति
जीवनसाथी की आर्थिक स्थिति का विचार करते समय अगर धनेश की दृष्टि सप्तम भाव पर हो या फिर सप्तमेश धन भाव को देख रहा हो तो यह इस बात का संकेत समझना चाहिए कि जीवनसाथी धनवान होगा.सप्तमेश जन्मपत्री में चतुर्थ, पंचम, नवम अथवा दशम भाव में हाने पर विवाह सुखी सम्पन्न एवं धनवान परिवार में होता है.सप्तमेश अगर द्वितीयेश, लाभेश, चतुर्थेश या कर्मेश के साथ प्रथम, चतुर्थ, सप्तम या दशम भाव में युति बनता है तो विवाह धनिक कुल में होना संभव होता है.

जीवनसाथी की आजीविका
जन्म कुण्डली में अगर चतुर्थ भाव का स्वामी द्वितीय अथवा द्वादश भाव में होता है तो नौकरी करने वाला जीवनसाथी मिलता है.चतुर्थ भाव का स्वामी केन्द्रभाव के स्वामी के साथ युति बनता है तो जीवनसाथी व्यवसायी होता है.इसी प्रकार अगर सप्तमेश, द्वितीय, पंचम, नवम, दशम या एकादश भाव में हो और सप्तमेश चन्द्र, बुध या शुक्र हो तो जीवनसाथी व्यापारी होता है.सूर्य, मंगल अथवा शनि सप्तमेश हो और नवमांश में उच्च या स्वराशि में हो तो जीवनसाथी उच्चपद पर कार्य करने वाला होता है.कुण्डली में अगर राहु केतु सप्तम भाव में हो अथवा सप्तमेश षष्टम, अष्टम, द्वादश में हो साथ ही नवमांश कुण्डली में भी कमज़ोर हो तो जीवनसाथी समान्य नौकरी करने वाला होता है.

Monday, 16 November 2015

किसी व्यक्ति का मृत्यु का समय निकट आ जाता है...

कई बार लोगों के साथ ऐसा होता है

कि डॉक्टर्स द्वारा किसी व्यक्ति के लिए बोल दिया जाता है

कि अब उसका जीवन कुछ ही समय का शेष है।

ऐसे में कुछ विद्वानों के अनुसार जब

किसी व्यक्ति का मृत्यु का समय निकट आ जाता है

तो उसके माथे पर चंदन का तिलक लगाना चाहिए।

यदि यह तिलक जल्दी सूख जाता है तब

तो समझना चाहिए कि उस व्यक्ति का जीवन अभी शेष है।

इसके विपरित यदि वह तिलक

जल्दी नहीं सूखता है तो दुर्भाग्यवश

विपरित परिणाम प्राप्त हो सकते हैं।

यानि व्यक्ति की मृत्यु की संभावनाएं प्रबल

हो जाती हैं क्योंकि मृत्यु के समय व्यक्ति के माथे

की गर्मी सबसे पहले समाप्त हो जाती है,

मस्तक एकदम ठंडा हो जाता है।

इस वजह से चंदन जल्दी नहीं सूख पाता।

यदि ऐसा होता है तो संबंधित व्यक्ति के स्वास्थ्य के संबंध में

पूरी सावधानी बरतनी चाहिए।

डॉक्टर्स आदि की सलाह लेकर बीमार

व्यक्ति का उचित ध्यान रखें। इसके पश्चात अनहोनी टल सकती है।

Saturday, 5 September 2015

श्राद्ध क्या हें..??? श्राद्ध कब,क्यों एवं केसे करें..???

स्कंद पुराण के अनुसार पितरों और देवताओं की योनि ऐसी है कि वे दूर से कही हुई बातें सुन लेते हैं। दूर की पूजा भी ग्रहण कर लेते हैं और दूर से की गई स्तुति से भी संतुष्ट हो जाते हैं। देवता और पितर गंध तथा रस तृण से तृप्त होते हैं। जैसे मनुष्यों का आहार अन्न है, पशुओं का आहार तृण है, वैसे ही पितरों का आहार अन्न का सार तत्व है। जिस प्रकार गोशाला में बिछड़ी हुई माता को बछड़ा किसी न किसी प्रकार ढूंढ़ ही लेता है, उसी प्रकार मंत्र आहूत द्रव्य को पितरों के पास किसी न किसी प्रकार पहुंचा ही देता है। अपने पितरों का तिथि अनुसार श्राद्ध करने से पितृ प्रसन्न होकर अनुष्ठाता की आयु को बढ़ा देते हैं। साथ ही धन धान्य, पुत्र-पौत्र तथा यश प्रदान करते हैं।




महर्षि याज्ञवल्क्य ने अपनी याज्ञवल्क्य स्मृति में लिखा है कि पितर लोग श्राद्ध से तृप्त होकर आयु, पूजा, धन, विद्या, स्वर्ग, मोक्ष, राज्य एवं अन्य सभी सुख प्रदान करते हैं। ‘आयु: प्रजां, धनं विद्यां स्वर्गं, मोक्षं सुखानि च। प्रयच्छान्ति तथा राज्यं प्रीता नृणां पितां महा:॥ याज्ञ स्मृति 1/270।

श्राद्ध चंद्रिका में कर्म पुराण के माध्यम से वर्णन है कि श्राद्ध से बढ़कर और कोई कल्याण कर वस्तु है ही नहीं इसलिए समझदार मनुष्य को प्रयत्नपूर्वक श्राद्ध का अनुष्ठान करना चाहिए। स्कन्द पुराण के नागर खण्ड में कहा गया है कि श्राद्ध की कोई भी वस्तु व्यर्थ नहीं जाती, अतएव श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।
हमारे धर्म शास्त्रों में श्राद्ध के सम्बन्ध में इतने विस्तार से विचार किया गया है कि इसके सामने अन्य समस्त धार्मिक कार्य गौण लगने लगते हैं. श्राद्ध के छोटे से छोटे कार्य के सम्बन्ध में इतनी सूक्ष्म मीमाँसा और समीक्षा की गई है कि विचारशील व्यक्ति तो सहज में ही चमत्कृत हो उठते हैं. वास्तव में मृत माता-पिता एवं अन्य पूर्वजों के निमित्त श्रद्धापूर्वक किया गया दान ही “श्राद्ध” है. हम यूँ भी कह सकते हैं कि श्रद्धापूर्वक किए जाने के कारण ही इसे श्राद्ध कहा गया है. श्राद्ध से सम्बन्धित विभिन्न पहलुओं पर आईये डालते हैं एक नजर धार्मिक दृष्टिकोण से…………!!!
“श्राद्धकल्पता” अनुसार पितरों के उद्देश्य से श्रद्धा एवं आस्तिकतापूर्वक पदार्थ-त्याग का दूसरा नाम ही श्राद्ध है.

पित्रयुद्देश्येन श्रद्दया तयक्तस्य द्रव्यस्य
ब्राह्मणैर्यत्सीकरणं तच्छ्राद्धम !!



“श्राद्धविवेक” का कहना है कि वेदोक्त पात्रालम्भनपूर्वक पित्रादिकों के उद्देश्य से द्रव्यत्यागात्मक कर्म ही श्राद्ध है—-श्राद्धं नाम वेदबोधित पात्रालम्भनपूर्वक प्रमीत पित्रादिदेवतोद्देश्यको द्रव्यत्यागविशेष: !

पितरों को भोज्य पदार्थो का श्राद्धापूर्वक अर्पण ही श्राद्ध है। ब्रह्म पुराण में कहा गया है कि ‘देशे काले च पात्रे च श्राद्धया विधिना चयेत। पितृनुद्दश्य विप्रेभ्यो दत्रं श्राद्धमुद्राहृतम’॥ श्राद्धतत्व में पुलस्त्य जी कहते हैं कि श्राद्ध में संस्कृत व्यंजनादि पकवानों को दूध, दही, घी आदि के साथ श्राद्धापूर्वक देने के कारण ही इसका नाम श्राद्ध पड़ा, ‘संस्कृत व्यज्नाद्यं च पयोदधिद्यतान्वितम्’ श्राद्धया दीयते यस्माच्छाद्ध तेन प्रकीर्तितम्’।


” गौडीय श्राद्धप्रकाश” अनुसार भी देश-काल-पात्र पितरों के उद्देश्य से श्रद्धापूर्वक हविष्याण,तिल,कुशा तथा जल आदि का त्याग-दान श्राद्ध है—देशकालपात्रेषु पित्रयुद्देश्येन हविस्तिलदर्भमन्त्र श्रद्धादिभिर्दानं श्राद्दम !

शास्त्र के अनुसार पिता का श्राद्ध पुत्र को भी करना चाहिए। पुत्र न हो तो पत्नी श्राद्ध करे। पत्नी न हो तो सहोदर भाई और उसके अभाव में जामाता और दौहित्र भी श्राद्ध के अधिकारी हैं। माता का श्राद्ध पिता के ही साथ किया जाना चाहिए। मत्स्य पुराण में श्राद्ध का सर्वाधिक उपयुक्त समय दोपहर के बाद 24 मिनट का माना गया है। श्राद्ध के दौरान तीन गुण जरूरी हैं, पहला क्रोध न हो, दूसरा पवित्रता बनी रहे, तीसरा जल्दबाजी न हो। श्राद्धकर्ता को ताम्बूल, तेल मालिश, उपवास, औषधि तथा परान्न भक्षण आदि से वर्जित किया गया है।श्राद्ध भोजन ग्रहण करने वाले को भी पुनभरेजन, यात्रा, भार ढोना, दान लेना, हवन करना, परिश्रम करना और हिंसा आदि से वर्जित किया गया है। श्राद्ध में काला उड़द, तिल, जौ, सांवा, चावल, गेहूं, दुग्ध पदार्थ, मधु, चीनी, कपूर, बेल, आंवला, अंगूर, कटहल, अनार, अखरोट, नारियल, खजूर, नारंगी, बेर, सुपारी, अदरख, जामुन, परवल, गुड़, कमलगट्टा, नींबू, पीपल आदि प्रयोज्य बताए गए हैं।

वृहत्पराशर में श्राद्ध की अवधि में मांस भक्षण और मैथुन कार्य आदि का निषेध किया गया है। श्रीमद्भागवत के अनुसार श्राद्ध के सात्विक अन्न व फलों से पितरों की तृप्ति करनी चाहिए। शंखस्मृति, मत्स्य पुराण में कदम्ब, केवड़ा, मौलसिरी, बेलपत्र, करवीर, लाल तथा काले रंग के सभी फूल एवं उग्र गंध वाले सभी फूल वर्जित किए गए हैं।

इसके साथ ही श्राद्ध में कमल, मालती, जूही, चम्पा और सभी सुगंधित श्वेत पुष्प तथा तुलसी व भृंगराज प्रयोज्य बताए गए हैं। श्राद्ध चंद्रिका में केले के पत्ते का भोजन के उपयोग में वर्जित किया गया है। पत्तल से काम लिया जा सकता है, परंतु भोजन के सर्वाधिक उपयुक्त सोने, चांदी, कांसे और तांबे के पात्र बताए गए हैं।

श्राद्ध भोजन ग्रहण करने वालों के लिए रेशमी वस्त्र, कम्बल, ऊन, काष्ठ, तृण, कुश आदि के आसन श्रेष्ठ कहे गए हैं। काष्ठ आसनों में भी कदम्ब, जामुन, आम, मौलसिरी एवं वरुण के आसन श्रेष्ठ बताए गए हैं परंतु इनके निर्माण में लोहे की कोई कील नहीं होनी चाहिए। जिन आसनों का श्राद्ध में निषेध किया गया है उनमें पलाश, वट, पीपल, गूलर, महुआ आदि के आसन हैं।

श्राद्ध भोजन करने वालों में उनकी प्रज्ञा, शील एवं पवित्रता देखकर उन्हें आमंत्रित करने का विधान है। अपने इष्ट मित्रों तथा गोत्र वालों को खिलाकर संतुष्ट नहीं हो जाना चाहिए। श्राद्ध में चोर, पतित, नास्तिक, मूर्ख, मांस विक्रेता, व्यापारी, नौकर, शुल्क लेकर शिक्षण कार्य करने वाले, अंधे, धूर्त लोगों को नहीं आमंत्रित किया जाना चाहिए (मनुस्मृति, मत्स्य पुराण और वायु पुराण)। श्राद्ध में तर्पण को दायें हाथ से करना चाहिए। तिल तर्पण खुले हाथ से होना चाहिए। तिल को हाथ, रोओं में तथा हस्तबुल में नहीं लगे रहना चाहिए। 
यह सच है कि हमारे पितृ यानी पूर्वज श्राद्ध कर्म से संतृप्त होते हैं। अत: श्राद्ध की विधि को श्रद्धापूर्वक संपन्न किया जाना चाहिए। पक्ष के दौरान यदि निष्ठा के साथ पूर्वजों को सिर्फ जल भी अर्पित किया जाए, तो सहज ही प्रसन्न हो जाता हैं। वैदिक पंरपरा मे श्राद्ध की विधि में चार कर्म बताए गए हैं। पिंडदान, हवन, तर्पण और ब्राह्मण भोजन। ‘हवन पिंड दानश्च श्राद्धकाले कृताकृतम’। इस नियम के अनुसार यदि संभव हो, तो श्राद्ध में पिंडदान और हवन किया जा सकता है। यदि संभव न हो तो, पिंडदान भी छोड़ा जा सकता है। लेकिन दर्पण और ब्राह्मण भोज श्राद्ध का मुख्य अंग हैं। इनके करने से पूर्वजों को तृप्ति मिलती है। इसलिए इस कर्म को अवश्य करें।
श्राद्ध करना जरूरी है, क्योंकि मृत्यु के पश्चात कभी कोई जीव बहुत दिनों तक बेहोश हो जाता है तो उसको होश में लाने के लिए श्राद्ध होता है। कहीं वह जीव कीट, पतंग आदि की योनि में चला जाता है तो उसको कृत्यकारक भोजन मिले- इसके लिए भी श्राद्ध की आवश्यकता है। कोई भूत-प्रेत-पिशाच हो जाए तो उसको उस योनि से छुड़ाने के लिए भी श्राद्ध की आवश्यकता होती है।
श्राद्ध में एक, तीन या पांच सदाचारी एवं धार्मिक स्वभाव के ब्राह्मणों को भोजन कराने का विधान हैं। भोजन कराने के बाद ब्राह्मणों को वस्त्र, द्रव्य और दक्षिणा देने की परंपरा हैं। अत: भोजन के बाद ब्राह्मणों को तिलक लगाकर दक्षिणा अवश्य देनी चाहिए, क्योंकि इसके बिना श्राद्ध के उद्धेश्य पूरे नहीं होते।
फिर श्राद्धकर्ता को अपने बंधु-बांधवों के साथ श्राद्धान्न का प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। इस प्रकार विधिवत श्राद्ध करने से पितर संतुष्ट होकर धन और वंश की वृद्धि का आर्शीवाद देते हैं।

नरक में हो तो नरक से मुक्त हो और स्वर्ग में हो तो वहां उसको विषय-सुख मिले-इसलिए भी श्राद्ध होता है। जीव जहां भी होगा वहां उसके पास भगवान श्राद्ध का सुख भेज देंगे। यदि वह भगवान से मिल गया होगा या मुक्त हो गया होगा तो श्राद्ध का जो फल है, वह श्राद्ध करने वाले के पास लौटकर आ जाएगा और उसको मिल जाएगा। इसलिए वह जो श्रद्धा-संपाद्य, श्रद्धा के द्वारा सम्पन्न होने वाला कर्म है, इसको कर लेना ही अच्छा रहता है।

इसलिए मरने के बाद आत्मा रहती है, यह विश्वास श्राद्ध से प्राप्त होता है। अपने पिता के जीवन-काल में यदि कोई अवज्ञा हुई हो तो उसका परिमार्जन हो जाता है। परलोक है, कर्म का फल मिलता है-ये सब बातें श्राद्ध करना चाहिए और अगर दूसरा कोई करने वाला न हो या उसके करने पर विश्वास न हो, तो स्वयं कर लेना चाहिए।

श्राद्ध गांव में या नगर में भी होता है, नदी तट पर भी होता है और तीर्थ में भी होता है। अत: यदि कोई आपका श्राद्ध करने वाला हो, और उस पर आपका विश्वास हो तो बहुत बढ़िया है। उस पर श्राद्ध का भार छोड़ दीजिए। मरने वाले जीव के लिए श्राद्ध आवश्यक है।

श्राद्ध न करने से हानि:–

जो लोग यह समझकर कि पितर हैं ही कहाँ—श्राद्ध नही करता, पितर-लोग लाचार होकर उसका रक्तपान करते हैं. जो उचित तिथि पर जल से अथवा भोजा इत्यादि से भी श्राद्ध नहीं करता,पितर उसे श्राप देकर अपने लोक को लौट जाते हैं. मार्कण्डेयपुराण का कहना है कि जिस कुल में श्राद्ध नहीं होता,वहाँ वीर,निरोगी,शतायु पुरूष नहीं जन्म लेते. जहाँ श्राद्ध नहीं होता, वहाँ वास्तविक कल्याण नहीं होता.

श्राद्ध में महत्व के साथ पदार्थ :–

गंगाजल, दूध,शहद, कुशा,सूती कपडा, दौहित्र और तिल–ये कुल सात श्राद्ध में बहुत ही महत्व के प्रयोजनीय हैं. इनके अतिरिक्त श्राद्धकर्म में तुलसी की भी विशाल महिमा कही गई है. तुलसी की गंध से पितृगण प्रसन्न होकर, पूर्णत: तृप्ति को प्राप्त कर इस लोक से विष्णुलोक की ओर गमन कर जाते हैं.

श्राद्धकर्ता के लिए वर्ज्य सात वस्तुएं:–

पान खाना, उपवास, स्त्रीसंभोग,औषध,दातुन करना और पराये अन्न का सेवन करना—ये सात वस्तुएं श्राद्धकर्ता के लिए वर्जित हैं. यदि भूल से इनमें से किसी वस्तु का प्रयोग हो भी जाए तो प्रायश्चित कर 108 बार गायत्री मन्त्र का जाप अवश्य कर लेना चाहिए.

इसके अतिरिक्त श्राद्ध में ताँबें के बर्तनों का बहुत महत्व है. लोहे/स्टील के बर्तनों का श्राद्ध में कदापि उपयोग नहीं करना चाहिए. रसोई बनाते अर्थात खाना बनाने में भी इनका उपयोग नहीं किया जाता. केवल काटने या धोने इत्यादि के लिए इन्हे प्रयोग में लाया जा सकता है.

श्राद्ध में प्रशस्त अन्न:-

फलादि, काले उडद,तिल,जौं,श्यामक चावल, गेहूँ, दूध के बने सभी पदार्थ, शहद, चीनी,कपूर, आँवला, अंगूर, कटहल, गुड, नारियल, नींबूं, अखरोट इत्यादि पदार्थ प्रशस्त कहे गये हैं. अत: इनका अधिकाधिक प्रयोग करना चाहिए.

श्राद्ध में निषिद्ध अन्न:-

चना, मसूर, सत्तू, मूली, जीरा, कचनार, काला नमक, लौकी, बडी सरसों, सरसों का शाक, खीरा, और कोई भी बासी, गला-सडा,कच्चा, अपवित्र फल या अन्न निषिद्ध है.

श्राद्ध में पाठय प्रसंग :-

श्राद्धकाल में पुरूषसूक्त,श्रीसूक्त,सौपर्णाख्यान,श्रीभागवतगीता,ऎन्द्रसूक्त,सोमसूक्त,सप्तार्चिस्तव,मधुमती अथवा अन्य किसी पुराणादि का पठन-श्रवण अवश्य करना चाहिए.

श्राद्ध कैसे करें :— 

भारत में किसी भी तीर्थ पर जाकर पितृ की तिथि अनुसार योग्य विद्वान ब्राह्मण द्वारा कर्मकांड के अंतर्गत सर्वप्रथम तीर्थ के देवता, ऋषि मंडल, पितृ एवं द्विय मनुष्य के निमित्त श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करें। उत्तर तथा दक्षिण दिशा में क्रमशः देव, ऋषि, यम, पितृ आदि का तर्पण वैदिक पद्धति से शांत चित्त से करना चाहिए।

कैसे समझें पितृ अतृप्त हैं :— कभी परिवार में अस्थिरता का वातावरण हो, परिवारजन मानसिक तनाव के दौर से गुजर रहे हों तो मत्स्यपुराण का संकेत है कि उस घर के पितृ अतृप्त हैं, अतः वैदिक रीति से श्राद्ध करें। श्राद्घ ज्येष्ठ या कनिष्ठ पुत्र को करना चाहिए। इनकी अनुपस्थिति या श्रद्धारहित होने पर मंझला पुत्र श्राद्ध करने का अधिकारी है।

तो प्रसन्न होंगे पितृ :— तीर्थ पर तर्पण, सुपिंडि श्राद्ध तथा पितृ दोष होने पर नारायण बल्ली कर्म द्वारा सुपिंडि श्राद्ध, अनवष्टका श्राद्ध, दर्श श्राद्ध तथा इन सबके निमित्त ब्राह्मण भोजन, बटुक, कन्या को भोजन करा यथेष्ठ वस्तुदान करने से पितृ प्रसन्न होकर शुभाशीष देते हैं। अन्त में एक बात, कि श्राद्ध में भोजन के समय मौन रहना चाहिए. माँगने या प्रतिषेद करने का इशारा हाथ से करना चाहिए. खाना खाते हुए पंडित जी से यह नहीं पूछना चाहिए कि “खाना कैसा है ?”, अन्यथा पितर निराश होकर लौट जाते हैं.

इन बातों/चीजों भी रखें ध्यान——• श्राद्ध के दिन पवित्र भाव से पितरों के लिए भोजन बनवाएं और श्राद्ध कर्म करें।

• मध्याह्न में कुश के आसन पर स्वयं बैठें और ब्राह्मण को बिठाऐं। एक थाली में गौं, कुत्ता और कौवे के भोजन रखें। दूसरी थाली में पितरों के लिये


“ ॐ देवाभ्य: पितृभ्यश्च ”


महायोगिभ्य एव च।


नम: स्वधायै स्वाहायै


नित्यमेव भवन्तु ते।।”

• यदि उक्त विधि को करना आपके लिए संभव न हो, वो जलपात्र में काले तिल डालकर दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके तर्पण कर सकते है।

• यदि घर में कोई भोजन बनाने वाला न हो, तो फलों और मिष्ठान का दान कर सकते हैं।

जानिए की क्या दान करने से क्या फल मिलता है,श्राद्ध में ?

पितृ पक्ष के सोलह दिनों में श्राद्ध, तर्पण, पिण्डदान आदि कर्म कर पितरों को प्रसन्न किया जाता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार पितृ पक्ष में दान का भी बहुत महत्व है। मान्यता है कि दान से पितरों की आत्मा को संतुष्टि मिलती है और पितृदोष भी खत्म हो जाते हैं। आईए जानते हैं पितृपक्ष में क्या दान करने से क्या फल मिलता है - गाय का दान- धार्मिक दृष्टि से गाय का दान सभी दानों में श्रेष्ठ माना जाता है। लेकिन श्राद्ध पक्ष में किया गया गाय का दान हर सुख और ऐश्वर्य देने वाला माना गया है।

तिल का दान:- श्राद्ध के हर कर्म में तिल का महत्व है। इसी तरह श्राद्ध में दान की दृष्टि से काले तिलों का दान संकट, विपदाओं से रक्षा करता है।

घी का दान:- श्राद्ध में गाय का घी एक पात्र (बर्तन) में रखकर दान करना परिवार के लिए शुभ और मंगलकारी माना जाता है।

भूमि दान:- अगर आप आर्थिक रूप से संपन्न है तो श्राद्ध पक्ष में किसी कमजोर या गरीब व्यक्ति को भूमि का दान आपको संपत्ति और संतति लाभ देता है। किंतु अगर यह संभव न हो तो भूमि के स्थान पर मिट्टी के कुछ ढेले दान करने के लिए थाली में रखकर किसी ब्राह्मण को दान कर सकते हैं।


वस्त्रों का दान:- इस दान में धोती और दुपट्टा सहित दो वस्त्रों के दान का महत्व है। यह वस्त्र नए और स्वच्छ होना चाहिए।

चाँदी का दान:- पितरों के आशीर्वाद और संतुष्टि के लिए चाँदी का दान बहुत प्रभावकारी माना गया है।

अनाज का दान:- अन्नदान में गेंहू, चावल का दान करना चाहिए। इनके अभाव में कोई दूसरा अनाज भी दान किया जा सकता है। यह दान संकल्प सहित करने पर मनोवांछित फल देता है।

गुड़ का दान:- गुड़ का दान पूर्वजों के आशीर्वाद से कलह और दरिद्रता का नाश कर धन और सुख देने वाला माना गया है।

सोने का दान:- सोने का दान कलह का नाश करता है। किंतु अगर सोने का दान संभव न हो तो सोने के दान के निमित्त यथाशक्ति धन दान भी कर सकते हैं।

नमक का दान:- पितरों की प्रसन्नता के लिए नमक का दान बहुत महत्व रखता है।

Monday, 31 August 2015

किस ग्रह के दोष से होता है कौन-सा रोग ?

1-सूर्य-

अस्‍थि‍ विकार, सिरदर्द, पित्त रोग, आत्मिक निर्बलता, ने‍त्र में दोष आदि।
क्या करें जब सूर्य अशुभ हो, जानिए सरल उपाय:- जब सूर्य अशुभ फल देने लगता है, तो जातक के जोड़ की हड्डी दर्द देती है। शरीर अकड़ने लगता है। मुंह में थूक बार-बार आता है। घर में भैंस या लाल गाय हो तो उस पर संकट आता है।

सरल उपाय :-

* प्रत्येक कार्य करने से पहले मीठा खाएं।

* बहते पानी में गुड़ व तांबा बहाएं।

* रविवार का व्रत करें।

* विष्णु जी की आराधना करें।

* चरित्र ठीक रखें अर्थात् गलत कार्यों से बचें।

* सूर्य को मिश्री युक्त जल चढ़ाएं।

* किसी भी सूर्य मंत्र का 21 बार जाप करें।

* रविवार के दिन लाल वस्तुओं का दान करें।

* ॐ घ्रणि सूर्याय नम: का जाप करें।

* आदित्य-ह्रदय स्तोत्र का पाठ करें।

* माणिक्य अनामिका अंगुली में धारण करें।

* माणिक्य, गुड़, कमल-फूल, लाल-वस्त्र, लाल-चन्दन, तांबा, स्वर्ण सभी वस्तुएं एवं दक्षिणा रविवार के दिन दान करें।

2-चंद्र-

मानसिक दुर्बलता, रक्त विकार, वाम नेत्र दोष, जलोदर, शीत प्रकृति के रोग, जुकाम, नजला आदि।

3-मंगल-

पित्त रोग, सूखा रोग, भय, दुर्घटना, अग्नि से भय, बिजली से भय, रक्त बहना, उच्च रक्तचाप आदि
मंगल से पीड़ित व्यक्ति के लिए प्रतिदिन ध्यान करना उत्तम होता है। ध्यान रहे कि अशुभ मंगल से धैर्य की कमी होती है अत: किसी भी स्थिति में धैर्य बनाए रखें।

अशुभ मंगल के लिए टोटके :-

* लाल वस्त्र में सौंफ बांधकर शयन कक्ष में रखें।
* बंधुजनों को मिष्‍ठान्न का सेवन कराएं।

* बंदरों को गुड़ और चने खिलाने चाहिए।
* गाय को चारा व जल पिलाकर सेवा करें।
* गाय पर लाल वस्त्र ओढ़ाएं।
मंग्ल दोष हो तो क्या न करें..
* मंगल से पीड़ित व्यक्ति ज्यादा क्रोध न करें।
* अपने आप पर नियंत्रण नहीं खोना चाहिए।

* किसी भी कार्य में जल्दबाजी नहीं दिखाएं।
* किसी भी प्रकार के व्यसनों में लिप्त नहीं होना चाहिए।

कब अशुभ फल देता है मंगल...


वैदिक ज्योतिष के अनुसार कर्क राशि में स्थित होने पर मंगल को नीच का कहा जाता है। यानी कर्क राशि में स्थित होने पर मंगल अन्य सभी राशियों की तुलना में शक्तिहीन व निर्बल होता है। इस स्‍थिति में वह अपने शुभ फल देने में असमर्थ होता है।मंगल का गोचर प्रभाव अन्य ग्रहों के गोचर से भी प्रभावित होता है, विशेषकर मानव जीवन को अत्यधिक प्रभावित करने वाले ग्रह गुरु व शनि के गोचर का ध्यान रखते हुए राशियों का फल निर्धारण किया जाना चाहिए।मंगल का गोचर प्रभाव अन्य ग्रहों के गोचर से भी प्रभावित होता है, विशेषकर मानव जीवन को अत्यधिक प्रभावित करने वाले ग्रह गुरु व शनि के गोचर का ध्यान रखते हुए राशियों का फल निर्धारण किया जाना चाहिए।

मंगल को प्रसन्न करने के असरदायक उपाय

मंगल की वस्तुओं का करें दान...
कई बार किसी समय-विशेष में कोई ग्रह अशुभ फल देता है, ऐसे में उसकी शांति आवश्यक होती है। गृह शांति के लिए कुछ शास्त्रीय उपाय प्रस्तुत हैं। इनमें से किसी एक को भी करने से अशुभ फलों में कमी आती है और मंगल देवता प्रसन्न होते हैं।

* मंगल देव को भूमिपुत्र भी कहा जाता है। उन्हें प्रसन्न करने के लिए मंगलवार का व्रत रखें। कई बार किसी समय-विशेष में कोई ग्रह अशुभ फल देता है, ऐसे में उसकी शांति आवश्यक होती है। गृह शांति के लिए कुछ शास्त्रीय उपाय प्रस्तुत हैं। इनमें से किसी एक को भी करने से अशुभ फलों में कमी आती है और मंगल देवता प्रसन्न होते हैं।
* मंगल देव को भूमिपुत्र भी कहा जाता है। उन्हें प्रसन्न करने के लिए मंगलवार का व्रत रखें।
* एक समय बिना नमक का भोजन करें।
* हनुमान चालीसा, हनुमानाष्टक, बजरंग बाण के पाठ करने से मंगल की शांति होती है।
* इसके अलावा निम्न वस्तुओं के दान से भी मंगल प्रसन्न होते हैं : -
* मूंगा, गेंहू, मसूर, लाल वस्त्र, कनेरादि रक्त पुष्प, गुड़, गुड़ की रेवड़ियां, बताशे..
* मीठी रोटी (गुड़ व गेंहू की), तांबे के बर्तन, लाल चंदन, केसर, लाल गाय आदि का दान करें।* कष्ट मिटाएं

मंगल के मंत्र :-

सूर्योदयकाल के समय निम्न मंत्रों के जाप से भी काफी फायदा होता है।

ॐ अं अंगारकाय नम: अथवा
ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम: मंत्र

विशेष : 1,00,001 बार जप करने से यह मंत्र सिद्ध हो जाते हैं।

4-बुध-

कफ दोष, वाणी रोग, त्रिदोष, पांडुरोग।
क्या करें जब बुध अशुभ हो, जानिए सरल उपाय
बुध के अशुभ होने के लक्षण :-
बुध जब अशुभ फल देता है, तो जातक के दांत झड़ने लगते है। सूंघने की शक्ति क्षीण होने लगती है। संभोग शक्ति क्षीण हो जाती है एवं बोलते समय जातक हकलाने लगता है।

सरल-उपाय

* बुधवार का व्रत रखें।

* हिजड़ों को हरे वस्त्र एवं हरी चूड़ी का दान करें।

* दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। * साबुत हरे मूंग का दान करें।

* पन्ना या हरा ऑनेक्स कनिष्ठिका में धारण करें।

* तोते की सेवा करें।

* दांत साफ रखें।

* ॐ बुं बुधाय नम: का जाप करें।
* कांस्य-पात्र (कांसे का बर्तन), हरा-वस्त्र, घी, पन्ना, कपूर, शास्त्र, फूल, फल एवं दक्षिणा बुधवार को दान करें।

5-बृहस्पति-

कफ दोष, उदर विकार, आंत्रशोथ आदि।

6-शुक्र-

वीर्ष दोष, प्रमेह, मधुमेह, मूत्र दोष, नेत्र दोष।
क्या करें जब शुक्र अशुभ हो, जानिए सरल उपाय
शुक्र के अशुभ होने के लक्षण शुक्र जब अशुभ फल देता है, तो जातक का अंगूठा बिना किसी बीमारी के बेकार हो जाता है। स्वप्न-दोष बार-बार होने लगता है एवं त्वचा में विकार (त्वचा संबंधी रोग) होने लगता है।

सरल-उपाय

* शुक्रवार का व्रत रखें।

* अपने भोजन में से गाय को खिलाएं।
* लक्ष्मी की उपासना करें।

* सफेद एवं साफ वस्त्र पहनें।
* घी, दही, कपूर एवं मोती का दान करें।

* हीरा, स्फटिक अथवा अमेरिकन डायमंड मध्यमिका अंगुली में धारण करें।

* ॐ शुं शुक्राय नम: का जाप करें।

* दूसरों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी लें।

* सफेद-चंदन, सफेद-चावल, सफेद-वस्त्र, सफेद-चित्र, सफेद-फूल, चांदी, हीरा, घी, स्वर्ण, दही, सुगंधित-द्रव्य एवं शक्कर के साथ दक्षिणा रखकर किसी कन्या या एक आंख वाले को शुक्रवार के दिन दान करें।

7-शनि-

लकवा, वात रोग, घुटनों में दर्द, गठिया, पैरों में पीड़ा, आकस्मिक दुर्घटना।
क्या करें जब शनि अशुभ हो, जानिए सरल उपाय
जानिए शनि के अशुभ होने के लक्षण :-
शनि जब अशुभ फल देने लगता है, तो जातक को घर की परेशानी आती है। शनि अशुभ होने से घर गिरने की स्थिति भी आ सकती है। जातक के शरीर के बाल भी झड़ने लगते हैं। विशेषकर भौंह के बाल झड़ने लगे, तो समझना चाहिए कि शनि अशुभ फल दे रहा है।

सरल उपाय :-

* शनिवार का व्रत करें।

* रोटी में तेल लगाकर कुत्ते या कौए को खिलाएं।

* नीलम अथवा जामुनिया मध्यमा अंगुली में पहनें।

* सांप को दूध पिलाएं।

* लोहे का छल्ला जिसका मुंह खुला हो मध्यमा अंगुली में पहनें।

* नित्य प्रतिदिन भगवान भोलेनाथ पर काले तिल व कच्चा दूध चढ़ाना चाहिए।

* यदि पीपल वृक्ष के नीचे शिवलिंग हो तो अति उत्तम होता है।

* सुंदरकांड का पाठ सर्वश्रेष्ठ फल प्रदान करता है।

* संध्या के समय जातक अपने घर में गूगल की धूप देवें।

* चींटियों को गोरज मुहूर्त में तिल डालना।

* अधिकारी या बड़ों की उपासना करें।

* भैरव की उपासना करें।

* नीलम, काली-तिल, उड़द, तेल, काले-फूल, लोहे की कील, जूता, स्वर्ण एवं दक्षिणा शनिवार के दिन शनि मंदिर या किसी गरीब को दान करें।

विशेष- काली गाय का दान करने से भी शनि शुभ फल देने लगता है। शनि देव न्यायप्रिय राजा हैं। अगर आप बुरे काम नहीं करते हैं किसी से धोखा, छल-कपट आदि नहीं करते हैं तो इस ग्रह से डरने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि शनिदेव सज्जनों को तंग नहीं करते।

  1. शनि के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए तिल का तेल एक कटोरी में लेकर उसमें अपना मुंह देखकर शनि मंदिर में रख आएं (जिस कटोरी में तेल हो उसे भी घर ना लाएं)। कहते हैं तिल के तेल से शनि विशेष प्रसन्न रहते हैं।
  2. सवापाव साबुत काले उड़द लेकर काले कपड़े में बांध कर शुक्रवार को अपने पास रखकर सोएं। ध्यान रहे अपने पास किसी को भी ना सुलाएं। फिर शनिवार को उसे शनि मंदिर में रख आएं।
  3. काला सुरमा एक शीशी में लेकर अपने ऊपर से शनिवार को नौ बार सिर से पैर तक किसी से उतरवा कर सुनसान जमीन में गाड़ देवें।
  4. शनि का कोई रत्न बिना किसी सलाह के न पहनें, ना ही लोहे का बना छल्ला पहने। बिना परामर्श के इन्हें पहनने से शनि का कुप्रभाव और बढ़ सकता है।
  5. शनि मंत्र का जप भी किया जाए तो काफी हद तक शनि के कुप्रभाव से बचा जा सकता है।
मंत्र - ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः।

8-राहु-

विष भय, कीटाणु रोग, कृष्ट रोग।

9-केतु-

आ‍कस्मिक दुर्घटना, विष विकार।

Wednesday, 5 August 2015

अंगूठी पहनते हो तो जरा संभलकर


कई लोग ज्योतिषियों के कहने पर कई तरह के रत्न धारण कर लेते हैं। कोई आय बढ़ाने के लिए पुखराज तो गुस्सा कम करने के लिए मोती पहन लेता है। लेकिन इनके फायदों के साथ कई नुकसान भी होते हैं। अगर ये आपके अनुकूल नहीं हो तो ये आपके लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं। आज हम आपको उन रत्नों के बारे में बता रहे हैं जिनके कई दुष्प्रभाव भी हैं।



नीलम बताया जाता है कि नीलम पहनने से शनि का बुरा प्रभाव कम होता है और इससे आदमी रंक से राजा भी बन सकता है। लेकिन अगर नीलम रत्न आपके लिए अनुकूल नहीं है तो आपके हाथ-पैरों में जबर्दस्त दर्द करने लगेगा, आपकी विपरीत बुद्धि उत्पन्न करेगा।

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लहसुनिया लहसुनिया यानि कैट्स आई केतु के दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए धारण किया जाता है। लेकिन इसकी विकिरण की क्षमता बहुत अधिक होती है। बताया जाता है कि जो भी व्यक्ति प्रतिदिन एक घंटे इस लहसुनिया नग से आठ हाथ की दूरी पर रहता होगा, वो भी इससे प्रभावित होगा। इससे उसको अंधापन या कुष्ठ रोग भी हो सकता है।
मूंगा जब कोई मांगलिक होता है तो उसे मूंगा धारण करने के लिए कहा जाता है। लेकिन कई ज्योतिषी कहते है कि मूंगा किसी राशि से मेल नहीं करें या आपके अनुकूल नहीं हो तो ये आपको कई नुकसान पहुंचा सकता है। इससे ब्लड प्रेशर आदि की समस्या हो सकती है।

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मोती ज्योतिषों के अनुसार जिसे ज्यादा गुस्सा आता है, उसे मोती पहनना चाहिए। कई लोग इसे धारण भी करते हैं। लेकिन अगर मोती आपके अनुकूल नहीं है तो ये आपका डिप्रेशन भी बढ़ा सकता है। इसलिए सोच समझकर धारण करें।


पुखराज आपने कई पैसे वालों को पुखराज धारण किए हुए देखा होगा। बताया जाता है कि पुखराज पहनने से पैसे की समस्या दूर होती है और विवाह भी जल्द हो जाता है। लेकिन जब पुखराज का दुष्प्रभाव है कि उससे आपका अहंकार बढ़ जाता है और इससे पेट भी गड़बड़ हो जाता है।



माणिक ज्योतिषों के अनुसार मिथून राशि वालों को माणिक पहनना चाहिए। लेकिन दूसरी ओर कई ज्योतिष कहते हैं कि अगर सूर्य की दशा में माणिक नहीं पहना जाए तो ये आपके लिए नुकसान दायक भी हो सकता है। वहीं कन्या राशि वालों के लिए तो इसे बहुत ही खतरनाक बताया है।





गोमेद गोमेद राहू का असर कम करने और आय के स्त्रोत बढ़ाने के लिए पहना जाता है। लेकिन राहू का दुष्प्रभाव ये है कि अगर ये आपके अनुकूल नहीं है तो ये उल्टा असर दिखा सकता है।

Thursday, 30 July 2015

नहाने के पानी का ये प्राचीन उपाय करने से दूर हो सकती है दरिद्रता


नहाने से स्वास्थ्य लाभ और पवित्रता मिलती है। सभी प्रकार के पूजन कर्म आदि नहाने के बाद ही किए जाते हैं, इस कारण स्नान का काफी अधिक महत्व है। पुराने समय में सभी ऋषि-मुनि नदी में नहाते समय सूर्य को जल अर्पित करते थे और मंत्रों का जप करते थे। इस प्रकार के उपायों से अक्षय पुण्य मिलता है और पाप नष्ट होते हैं।

Nahane ke pani ka ye upay dur kar sakta hai daridrta

ज्योतिष में धन संबंधी परेशानियों से मुक्ति पाने के लिए कई उपाय बताए गए हैं, जो अलग-अलग समय पर किए जाते हैं। नहाते समय करने के लिए एक उपाय बताया गया है। इस उपाय को सही विधि से हर रोज किया जाए तो निकट भविष्य में सकारात्मक फल प्राप्त हो सकते हैं।

जानिए उपाय की विधि...

प्रतिदिन नहाने से पहले बाल्टी में पानी भरें और इसके बाद अपनी तर्जनी उंगली (इंडेक्स फिंगर) से पानी पर त्रिभुज का चिह्न बनाएं।

त्रिभुज बनाने के बाद एक अक्षर का बीज मंत्र ‘ह्रीं’ उसी चिह्न के बीच वाले स्थान पर लिखें। साथ ही, अपने इष्ट देवी-देवता से परेशानियों दूर करने की प्रार्थना करें।

हर रोज नहाने से पहले यह उपाय करें। इस उपाय के संबंध में किसी प्रकार की शंका या संदेह नहीं करना चाहिए। आस्था और विश्वास के साथ उपाय करेंगे तो सकारात्मक फल प्राप्त हो सकते हैं। साथ ही, इस उपाय की चर्चा भी किसी से नहीं करना चाहिए। अन्यथा उपाय का प्रभाव निष्फल हो जाता है।

नहाते समय करें मंत्रों का जप
शास्त्रों में दिन के सभी आवश्यक कार्यों के लिए अलग-अलग मंत्र बताए गए हैं। नहाते समय भी हमें मंत्र जप करना चाहिए। स्नान करते समय किसी मंत्र का पाठ किया जा सकता है या कीर्तन या भजन या भगवान का नाम लिया जा सकता है। ऐसा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।

नहाते समय इस मंत्र का जप करना श्रेष्ठ रहता है...
मंत्र: गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वति। नर्मदे सिन्धु कावेरी जलऽस्मिन्सन्निधिं कुरु।।

नदी में नहाते समय पानी पर ऊँ लिखें
यदि कोई व्यक्ति किसी नदी में स्नान करता है तो उसे पानी पर ऊँ लिखकर पानी में तुरंत डुबकी मार लेना चाहिए। ऐसा करने से नदी स्नान का पूर्ण पुण्य प्राप्त होता है। इसके अलावा आपके आसपास की नकारात्मक ऊर्जा भी समाप्त हो जाती है। इस उपाय से ग्रह दोष भी शांत होते हैं। यदि आपके ऊपर किसी की बुरी नजर है तो वह भी उतर जाती है।

Thursday, 2 July 2015

..तो कुंडली में मंगल के ऐसे दोष नही रहेंगे

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मंगल ग्रह को ज्योतिष शास्त्र में सभी ग्रहों का सेनापति माना गया है। इसी वजह से इसका प्रभाव भी काफी अधिक होता है। मंगल किसी भी व्यक्ति का स्वभाव पूरी तरह प्रभावित करता है। अगर यह किसी कुंडली में शुभ होता है तो वह व्यक्ति बहुत अपने जीवन में बहुत सफलता प्राप्त करता है लेकिन मंगल अशुभ हो या नीच राशि में होता है तो उसका जीवन परेशानियों से भरा रहता है।


कुंडली के किस भाव में मंगल कितना अशुभ-


-कुंडली में मंगल प्रथम भाव में हो तो वह व्यक्ति साहसी, मूढ़, अल्पायु, अभिमानी, शूर, सुंदररूप वाला और चंचल होता है।

- किसी भी व्यक्ति की कुंडली में मंगल चौथे घर में हो तो वह वस्त्र और भाई-बंधु से

हीन, वाहन रहित और दुखी होता है।

-जन्मकुंडली में सप्तम भाव में मंगल हो तो वह व्यक्ति रोगी, गलत कार्य करने वाला,

दुखी, पापी, निर्धन और पतले शरीर वाला होता है।

- मंगल अष्टम में होता है गरीब, कम उम्र का और दुखी रहने वाला होता है

- कुंडली के बाहरवें भाव में मंगल हो तो वह व्यक्ति आंखों का रोगी और चुगलखोर होता है। ऐसा व्यक्ति के जीवन में जेल भोगने के भी योग बन सकते हैं।


मंगल दोष मिटाने के उपाय-

- हर मंगलवार को शहद खाएं।

- 12 मंगलवार तक गुड़ पानी में बहाएं।

- हर मंगलवार को हनुमान मंन्दिर में लड्डू का प्रसाद चढ़ाए और बांटे।

- कुत्तों को मिठी रोटीयां खिलाएं।

- बताशे पानी में बहाएं।

- 7 मंगलवार तक दूध में चावल धोकर पानी में बहाएं।

- बंदरों को चने खिलाएं।

Monday, 29 June 2015

मीन लग्न और समस्या निवारक उपाय


जीवन में भरपूर सुख और सफलता की प्राप्ति हर मनुष्य का एक सपना होता है। लेकिन सुख-दुख, गम-खुशी, अमीरी-गरीबी तथा रोग एवं स्वास्थ्य आदि कालचक्र के ऎसे धुरे हैं, जो जीवन के चलने के साथ-साथ ही चलते हैं. दुनिया में हर इन्सान किसी न किसी समस्या से जूझ रहा है , जिनमें से एक होती है--व्यक्ति सम्बंधी समस्या जैसे अपने बारे में/अपनी पत्नि/संतान के बारे में,संतान होने या न होने इत्यादि के बारे में, दूसरी स्थान सम्बंधी मसलन किसी स्थान विशेष जैसे जमीन, जायदाद, मकान, व्यवसाय, नौकरी आदि की समस्या और तीसरी धातु अर्थात धन सम्बंधी समस्या. जीवन में आने वाली इन समस्यायों हेतु प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने तरीके से उपाय भी करता है, जिससे कि जीवन को सुखपूर्वक भोगा जा सके.
यहाँ हम आपको आपके जन्म लग्नानुसार कुछ ऎसे ही उपायों की जानकारी दे रहे हैं, जिससे कि आप भी अपनी विभिन्न समस्यायों से सरलतापूर्वक एवं शीघ्रता से निजात पा सकते हैं. 

आर्थिक समस्या निवारण हेतु:-

यदि आप आजीविका के क्षेत्र में बारबार अवरोध अनुभव कर रहे हैं, कार्यक्षेत्र में अधिकारी वर्ग से सम्बंधों में बिगाड उत्पन्न हो रहा हो अथवा पिता से तनावपूर्व स्थितियों का सामना करना पड रहा हो, तो इसके निवारणार्थ किसी भी द्वितीया/सप्तमी/द्वादशी तिथि से आरंभ कर नियमित रूप से सवा माह लगातार भगवान शिव की प्रतिमा के सम्मुख ग्यारह जपा कुसुम( अडहुल/ Chinese Rose) के पुष्प चढाकर श्री रूद्राष्टाध्यायी का पाठ करें. 
इसके अतिरिक्त घर अथवा कार्यस्थल की उतर-पश्चिम दिशा में सफेद पुष्पों के पौधे लगायें एवं संभव हो तो संयुक्त परिवार में ही निवास करें.
यदि जन्मकुंडली में बृहस्पति नीच अथवा कुंभ राशि में न हो तो सवा 5 रत्ती वजन का पुखराज रत्न भी स्वर्ण धातु में धारण कर सकते है.
केवलमात्र सिर्फ इस एक उपाय के करने से ही आप देखेंगें कि जहाँ एक ओर आपकी आमदनी के स्त्रोत खुलने लगे हैं, वहीं सामाजिक संबंधों में भी मधुरता की अभिवृद्धि होने लगी है.

भाग्योन्नति हेतु:-

यदि आपको भाग्योन्नति में बार-बार अवरोध कि स्थितियों का सामना करना पड रहा है, अथवा आपका प्रत्येक कार्य सफलता के समीप आकर रूक जाता हो, तो उसके लिए आप ये एक कार्य कीजिए, कि सर्वप्रथम स्वर्णमंडित गौरीशंकर रूद्राक्ष अथवा स्वर्ण की बनी शंखाकृति गले में धारण करें.
तत्पश्चात नित्य प्रात: स्नानादि पश्चात किसी पात्र में जल भरकर अपने सम्मुख रखें और निम्न मन्त्रोच्चारण पश्चात उस जल को किसी पीपल के वृक्ष को अर्पित कर दें . 

ॐ लां इन्द्राय देवाधिपतये नमः ।
ॐ रां अग्नये तेजाधिपतये नमः।
ॐ यां यमाय प्रेताधिपतये नमः ।
ॐ क्षां निऋत्ये रक्षोधिपतये नमः ।
ॐ वां वरुणाय जलाधिपतये नमः ।
ॐ यां वायवे प्राणाधिपतये नमः ।
ॐ सां सोमाय ताराधिपतये नमः ।
ॐ हां ईशानाय गणाधिपतये नमः ।
ॐ आं ब्रह्मणे प्रजाधिपतये नमः ।
ॐ ह्रीं अनन्ताय नागाधिपतये नमः


केवलमात्र इसी उपाय के करने से आप देखेंगें कि शनै: शनै: आपके भाग्य के समस्त अवरोध मिटकर जीवन में एक नई उर्जा, शान्ति एवं स्थायी सुख-समृद्धि का समावेश होने लगा हैं.


सम्पत्ति, वाहन सुख प्राप्ति हेतु:-

यदि आप जमीन-जायदाद, नजदीकी सगे सम्बन्धियों अथवा वाहन सम्बंधी किसी प्रकार की कोई समस्या/कष्ट का सामना कर रहे हैं, तो इसके लिए कम से कम 12 रविवार लगातार उपवास रखें और सूर्योदय से मध्यांह की अवधि के बीच में किसी निर्धन व्यक्ति को सवा किलो गेहूँ का दलिया दान करें. 
इसके साथ ही शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को श्वेत वस्त्र में सफेद आक के 5 फूल, दो त्रिमुखी रूद्राक्ष, चावल और पारद शिवलिंग बाँधकर घर के पूजास्थल में स्थापित करें एवं नित्य प्रात: श्री सूर्य गायत्री " ॐ आदित्याय विदमहे दिवाकराय धीमहि तन्नो सूर्य प्रचोदयात " का जाप किया करें.
यदि आप विधिपूर्वक उपरोक्त उपाय को सम्पन्न कर सकें तो समझिए कि आप सम्पत्ति,वाहन अथवा सामाजिक व्यवहार एवं य़श-मान सम्बन्धी बहुत सी समस्यायों से बेहद आसानी से मुक्ति पा सकेंगें. 


सुरूचिपूर्ण जीवन हेतु:-

यदि आप जीवन में बार-बार परेशानी एवं दैनिक कार्यों में व्यवधान अनुभव कर रहे हों, तो आपको प्रतिदिन सुबह अपने इष्टदेव के सम्मुख गाय के शुद्ध घी का दीपक अवश्य जलाते रहना चाहिए.
यदि आपकी जन्मकुंडली में चन्द्रमा नीच राशि में स्थित न हो तो आप सवा 7 रत्ती का चन्द्रकान्त मणि (Moon Stone ) दाहिने हाथ की अनामिका (Ring Finger) अंगुली में धारण कर सकते हैं अन्यथा शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के दिन एक द्विमुखी रूद्राक्ष गले में धारंण करें.
इसके साथ ही नियमपूर्वक प्रत्येक रविवार भगवान भुवनभास्कर का स्मरण कर थोडा कच्चा दूध और गुड किसी धार्मिक स्थल अथवा किसी निर्धन व्यक्ति को दान करते रहें, तो इन उपायों से जहाँ एक ओर आपका जीवन सुगम होगा, वहीं आपको जीवन में अनायास उत्पन हो रही कईं प्रकार की परेशानियों एवं बाधाओं से भी सहज रूप में ही मुक्ति मिलने लगेगी.


पारिवारिक कलह मुक्ति एवं दाम्पत्य सुख प्राप्ति हेतु:-

यदि आप दाम्पत्य जीवन में व्यवधान यथा पति-पत्नि में विवाद, वैचारिक मतभेद, अशान्ती जन्य किन्ही कष्टों का सामना कर रहे हैं तो उसकी निवृति एवं आपसी सामंजस्य की अभिवृद्धि हेतु आपको नियमित रूप से रात को सोने से पूर्व बिस्तर पर बैठकर ही 12 बार " नमोस्तु पुष्पबाणाय जगदानन्द कारिणे ! मन्मथाय जगन्नेत्र रतिप्रीतिप्रदायिने !! " मन्त्र का जाप करते रहना चाहिए.
न्यूनतम 40 दिन लगातार केसर मिश्रित नारियल जल द्वारा में भगवान शिव का अभिषेक करें.

इसके अतिरिक्त यदाकदा 9 वर्ष से कम उम्र की कन्यायों को मिष्ठान्न खिलाते रहें तो समझिए कि अब आपके दाम्पत्य जीवन में परस्पर प्रेम, माधुर्य एवं शान्ती का समावेश होने लगा है. 
* एक बात का विशेष तौर पर ध्यान रखें कि अपना श्यनकक्ष ( Bedroom ) कभी भूलकर भी घर के वायव्य कोण अर्थात उत्तर-पश्चिम (North-West) दिशा में न बनायें अन्यथा दम्पत्ति में आपसी सामंजस्य का अभाव सदैव बना ही रहेगा. 

भय, मानसिक तनाव एवं ऋण से मुक्ति हेतु:-

यदि आप किसी वजह से मानसिक तनाव में रहते हैं अथवा किसी अज्ञात भय से पीडित हैं, अपने आप को असुरक्षित महसूस करते हैं या फिर कहीं ऋण के बोझ से पीडित हैं तो उसके लिए सर्वप्रथम कम से कम 8 शुक्रवार लगातार किसी धार्मिक स्थल पर सवा 2 मीटर जामुनी रंग का कपडा और 250 ग्राम पंचमेवा चढायें. साथ ही वर्ष में कम से कम 2 बार अर्थात हर छ: माह की अवधि पश्चात किसी भिखारी को अपना पुराना वस्त्र अवश्य दान किया करें. 
अपने भवन की दक्षिण दिशा की दीवार पर लाल रंग के पेंट द्वारा "कलश" का एक चित्र बनवायें अथवा इस दिशा में छत पर कलश की आकृति युक्त एक लाल रंग का तिकोणा ध्वज लगायें.
प्रत्येक मंगलवार भगवान गणपति जी के सम्मुख तिलों के तेल का दीपक प्रज्जवल्लित कर उन्हे मीठे पान का भोग लगाया करें. 

इन साधारण से उपायों से एक ओर जहाँ आप मानसिक तनाव/भय/दबाव/चिन्ता इत्यादि से मुक्त हो पायेंगें, वहीं आपकी आय में वृद्धि के साथ ही ऋण से मुक्त होने की परिस्थितियाँ भी निर्मित होने लगेंगीं.

कुंभ लग्न और समस्या निवारक उपाय


जीवन में भरपूर सुख और सफलता की प्राप्ति हर मनुष्य का एक सपना होता है। लेकिन सुख-दुख, गम-खुशी, अमीरी-गरीबी तथा रोग एवं स्वास्थ्य आदि कालचक्र के ऎसे धुरे हैं, जो जीवन के चलने के साथ-साथ ही चलते हैं. दुनिया में हर इन्सान किसी न किसी समस्या से जूझ रहा है , जिनमें से एक होती है--व्यक्ति सम्बंधी समस्या जैसे अपने बारे में/अपनी पत्नि/संतान के बारे में,संतान होने या न होने इत्यादि के बारे में, दूसरी स्थान सम्बंधी मसलन किसी स्थान विशेष जैसे जमीन, जायदाद, मकान, व्यवसाय, नौकरी आदि की समस्या और तीसरी धातु अर्थात धन सम्बंधी समस्या. जीवन में आने वाली इन समस्यायों हेतु प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने तरीके से उपाय भी करता है, जिससे कि जीवन को सुखपूर्वक भोगा जा सके.
यहाँ हम आपको आपके जन्म लग्नानुसार कुछ ऎसे ही उपायों की जानकारी दे रहे हैं, जिससे कि आप भी अपनी विभिन्न समस्यायों से सरलतापूर्वक एवं शीघ्रता से निजात पा सकते हैं. 

आर्थिक समस्या निवारण हेतु:-

यदि आप आजीविका के क्षेत्र में बारबार अवरोध अनुभव कर रहे हैं, कार्यक्षेत्र में अधिकारी वर्ग से सम्बंधों में बिगाड उत्पन्न हो रहा हो अथवा पिता से तनावपूर्व स्थितियों का सामना करना पड रहा हो, तो इसके लिए सर्वप्रथम अपने घर एवं कार्यस्थल दोनो जगह पर चाँदी के किसी पात्र में शहद भरकर स्थापित करें.
किसी भी माह की पूर्णिमा तिथि के दिन श्री विष्णु मन्दिर में श्वेत वस्त्र का बना एक ध्वज अर्पित करें.
शनिवार के दिन चाँदी और स्वर्ण मिश्रित धातु का छल्ला मध्यमा अंगुली में तथा स्वर्ण मंडित तेरहमुखी रूद्राक्ष गले में धारण करें.
नियमपूर्वक प्रत्येक बुधवार एक नारियल और 11 छुआरे देवी मन्दिर में अर्पित किया करें. 
इसके अतिरिक्त यदि आपको व्ययाधिक्य के कारण किन्ही आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड रहा हो, तो उसकी निवृति के लिए टोपी/पगडी/वस्त्र आदि से सिर को ढाँपकर गुरूवार के दिन किसी पीपल के वृक्ष की 9 परिक्रमा अवश्य किया कीजिए. 
केवलमात्र सिर्फ इन चन्द उपायों के करने से ही आप देखेंगें कि जहाँ एक ओर आपकी आमदनी के स्त्रोत खुलने लगे हैं, वहीं सामाजिक संबंधों में भी मधुरता की अभिवृद्धि होने लगी है.

भाग्योन्नति हेतु:-

यदि आपको भाग्योन्नति में बार-बार अवरोध कि स्थितियों का सामना करना पड रहा है, अथवा आपका प्रत्येक कार्य सफलता के समीप आकर रूक जाता हो, तो उसके लिए आपको केवलमात्र सिर्फ एक उपाय करना है कि किसी भी माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन परिवार के समस्त सदस्यों को साथ लेकर आप गंगास्नान करें.
तत्पश्चात जीवन पर्यन्त प्रत्येक अमावस्या के दिन किसी सुयोग्य विद्वान ब्राह्मण को घर बुलाकर भोजन अवश्य कराते रहें. 
केवलमात्र इसी उपाय के करने से आप देखेंगें कि शनै: शनै: आपके भाग्य के समस्त अवरोध मिटकर जीवन में एक नई उर्जा, शान्ति एवं स्थायी सुख-समृद्धि का समावेश होने लगा हैं.

सम्पत्ति, वाहन सुख प्राप्ति हेतु:-

यदि आप जमीन-जायदाद, नजदीकी सगे सम्बन्धियों अथवा वाहन सम्बंधी किसी प्रकार की कोई समस्या/कष्ट का सामना कर रहे हैं, तो इसके लिए आपको 16 सोमवार लगातार सवा 2 किलो कच्चा दूध और हरा हकीक रत्न किसी नदी/ नहर इत्यादि बहते जल में प्रवाहित करना चाहिए.
इसके साथ ही शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को श्वेत वस्त्र में दो छ:मुखी रूद्राक्ष और चाँदी का छोटा सा त्रिशूल बाँधकर घर के पूजास्थल में स्थापित करें एवं नित्य प्रात: श्री शिव चालीसा का पाठ अवश्य किया करें.
यदि आप विधिपूर्वक उपरोक्त उपाय को सम्पन्न कर सकें तो समझिए कि आप सम्पत्ति,वाहन अथवा सामाजिक व्यवहार एवं य़श-मान सम्बन्धी समस्त समस्यायों से बेहद आसानी से मुक्ति पा सकेंगें. 

सुरूचिपूर्ण जीवन हेतु:-

यदि आप जीवन में बार-बार परेशानी एवं दैनिक कार्यों में व्यवधान अनुभव कर रहे हों, तो आपको प्रतिदिन सुबह अपने इष्टदेव के सम्मुख तिलों के तेल का दीपक अवश्य जलाते रहना चाहिए.
यदि आपकी जन्मकुंडली में शुक्र नीच राशि में स्थित न हो तो आप सवा 7 रत्ती का अमेरिकन डायमंड दाहिने हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण कर सकते हैं अन्यथा शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के दिन एक नवमुखी रूद्राक्ष गले में धारंण करें.
प्रत्येक सक्रान्ति को परिवार के समस्त सदस्यों का हाथ लगवाकर सवा किलो कच्ची खिचडी किसी भिखारी को दान करते रहें, तो इन उपायों से जहाँ एक ओर आपका जीवन सुगम होगा, वहीं आपको जीवन में अनायास उत्पन हो रही कईं प्रकार की परेशानियों एवं बाधाओं से भी सहज रूप में ही मुक्ति मिलने लगेगी.


पारिवारिक कलह मुक्ति एवं दाम्पत्य सुख प्राप्ति हेतु:-

यदि आप दाम्पत्य जीवन में व्यवधान यथा पति-पत्नि में विवाद, वैचारिक मतभेद, अशान्ती जन्य किन्ही कष्टों का सामना कर रहे हैं तो उसकी निवृति एवं आपसी सामंजस्य की अभिवृद्धि हेतु आपको नियमित रूप से श्री सूर्य गायत्री का पाठ करना चाहिए.
कम से कम 12 रविवार लगातार भगवान शिव का अभिषेक कर शिवलिंग पर गौ घृत मिश्रित लाल रक्त चन्दन का लेप लगायें.
धर्मपत्नि को वर्ष में कम से कम दो बार कुछ दिनो के लिए अपने पीहर (मायके) भेजें.
पति 24 या 32 ग्राम वजन का चाँदी का कडा तथा पत्नि लाख की चूडी अवश्य धारण किये रहे तो समझिए आपके दाम्पत्य जीवन में परस्पर प्रेम, माधुर्य एवं शान्ती का समावेश होने लगा है. 
* एक बात का विशेष तौर पर ध्यान रखें कि अपना श्यनकक्ष ( Bedroom) कभी भूलकर भी घर के नैऋत्य कोण अर्थात दक्षिण-पश्चिम ( South-West) दिशा में न बनायें अन्यथा आपसी तनाव की सदैव बनी ही रहेगी. 


भय, मानसिक तनाव से मुक्ति हेतु:-

यदि आप किसी वजह से मानसिक तनाव में रहते हैं अथवा किसी अज्ञात भय से पीडित हैं, अपने आप को असुरक्षित महसूस करते हैं तो उसके लिए सर्वप्रथम किसी भिखारी को शनिवार अथवा बुधवार के दिन नीला वस्त्र और चमडे की जूती/चप्पल दान करें.
अपने भवन की उत्तर दिशा में सफेद हंस की एक पत्थर की प्रतिमा स्थापित करें.
सोते समय सिरहाने एक चुटकी भर सुहागा लाल कागज की पुडिया में बाँधकर रखे रहें.
इन साधारण से उपायों से एक ओर जहाँ आपको मानसिक तनाव/भय/दबाव इत्यादि से मुक्ति मिलने लगेगी, वहीं परिवार के अन्य सदस्यों की भिन्न-भिन्न विचारधाराओं से मन में उपजने वाली उदासीनता एवं वैमनस्य का भाव भी जागृत नहीं हो पायेगा.

मकर लग्न और समस्या निवारक उपाय


                                   जीवन में भरपूर सुख और सफलता की प्राप्ति हर मनुष्य का एक सपना होता है। लेकिन सुख-दुख, गम-खुशी, अमीरी-गरीबी तथा रोग एवं स्वास्थ्य आदि कालचक्र के ऎसे धुरे हैं, जो जीवन के चलने के साथ-साथ ही चलते हैं. दुनिया में हर इन्सान किसी न किसी समस्या से जूझ रहा है , जिनमें से एक होती है--व्यक्ति सम्बंधी समस्या जैसे अपने बारे में/अपनी पत्नि/संतान के बारे में,संतान होने या न होने इत्यादि के बारे में, दूसरी स्थान सम्बंधी मसलन किसी स्थान विशेष जैसे जमीन, जायदाद, मकान, व्यवसाय, नौकरी आदि की समस्या और तीसरी धातु अर्थात धन सम्बंधी समस्या. जीवन में आने वाली इन समस्यायों हेतु प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने तरीके से उपाय भी करता है, जिससे कि जीवन को सुखपूर्वक भोगा जा सके. यहाँ हम आपको आपके जन्म लग्नानुसार कुछ ऎसे ही उपायों की जानकारी दे रहे हैं, जिससे कि आप भी अपनी विभिन्न समस्यायों से सरलतापूर्वक एवं शीघ्रता से निजात पा सकते हैं.

आर्थिक समस्या निवारण हेतु:-

यदि आप आजीविका के क्षेत्र में बारबार अवरोध अनुभव कर रहे हैं, कार्यक्षेत्र में अधिकारी वर्ग से सम्बंधों में बिगाड उत्पन्न हो रहा हो, पिता से तनावपूर्व स्थितियों का सामना करना पड रहा हो अथवा अत्यधिक परिश्रम के उपरान्त भी व्यवसायिक कार्यों में सफलता की प्राप्ति न हो पा रही हो, तो इसके लिए आपको सर्वप्रथम शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के दिन दाहिने हाथ की मध्यमा अंगुली में सवा 7 रत्ती वजन का ओपल रत्न तथा गले में एक चौदहमुखी रूद्राक्ष धारण करना चाहिए.
          
          घर/कार्यस्थल की पश्चिम दिशा में, गमले में सफेद फूलों वाले पौधे लगाकर रखें. लगातार 21 मंगलवार सिन्दूर, जायफल, शुद्ध घी, लाल रंग के पुष्प, बून्दी के 2 लड्डू, पान का एक पत्ता और 5 छुआरे संध्या समय श्री हनुमान जी के चरणौं में अर्पित कर श्री हनुमान चालीसा का पाठ करें. केवलमात्र सिर्फ एक इसी उपरोक्त उपाय के करने से ही आप देखेंगें कि जहाँ आपकी आमदनी के स्त्रोत खुलने लगे हैं, वहीं सामाजिक संबंधों में भी मधुरता की अभिवृद्धि होने लगी है.
         इसके अतिरिक्त यदि आपको व्ययाधिक्य के कारण किन्ही आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड रहा हो, तो उसकी निवृति के लिए घर के पूजनस्थल पर अष्टधातु निर्मित श्री कनकधारा यन्त्र स्थापित करें एवं उस पर लगातार 43 दिन तक नियमित मात्र एक गुलाब का पुष्प अर्पित किया करें. 

भाग्योन्नति हेतु:-

यदि आपको भाग्योन्नति में बार-बार अवरोध कि स्थितियों का सामना करना पड रहा है, अथवा आपका प्रत्येक कार्य सफलता के समीप आकर रूक जाता हो, तो उसके लिए सर्वप्रथम शुक्ल पक्ष के बुधवार के दिन सवा 9 रत्ती वजन का गोमूत्री रत्न दाहिने हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करें अथवा स्वर्ण मंडित एक द्विमुखी रूद्राक्ष गले में धारण करें.
          कम से कम 11 मंगलवार लगातार 2 बून्दी के लड्डू, 5 पान के पत्ते और एक नारियल लेकर रातभर उन्हे अपने सिरहाने रखें और अगले दिन इस सामग्री को किसी नदी/नहर इत्यादि बहते जल में प्रवाहित करें. 
अपने घर या कार्यस्थल की दक्षिण दिशा में सिन्दूर और शहद से भरे दो पात्र सदैव रखें रहें. 
आप देखेंगें कि शनै: शनै: आपके भाग्य के समस्त अवरोध हटकर जीवन में शान्ति एवं समृद्धि का समावेश होने लगा हैं.

सम्पत्ति, वाहन सुख प्राप्ति हेतु:-

यदि आप जमीन-जायदाद, नजदीकी सगे सम्बन्धियों अथवा वाहन सम्बंधी किसी प्रकार की कोई समस्या/कष्ट का सामना कर रहे हैं, तो इसके लिए आप प्रति शुक्रवार भूरे/काले अथवा अन्य किन्ही भी दो रंग के सांड को गुड मीठी रोटी खिलायें.
          लगातार एक वर्ष तक प्रतिमास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से पूर्णिमा तक नित्य चन्द्रमा को कच्चे दूध में कुशा एवं जल मिलाकर अर्घ्य अर्पित करें. इसके अतिरिक्त पूर्णिमा के दिन गले में चाँदी का एक मोती अवश्य धारण करें. यदि आप विधिपूर्वक उपरोक्त उपाय को सम्पन्न कर सकें तो समझिए कि आप सम्पत्ति,वाहन अथवा सामाजिक व्यवहार एवं य़श-मान सम्बन्धी समस्त समस्यायों से बेहद आसानी से मुक्ति पा सकेंगें. 

सुरूचिपूर्ण जीवन हेतु

यदि आप जीवन में बार-बार परेशानी एवं कार्यों में व्यवधान अनुभव कर रहे हों, तो इसकी निवृति हेतु आपको अपने घर में केले के दो पौधे लगाकर उनकी नियमित रूप से देखभाल करनी चाहिए एवं परिवार का कोई भी सदस्य संध्या समय उसके समीप शुद्ध घी का दीपक अवश्य जलाया करे.
अपने रसोईघर में पीतल का कोई पात्र अवश्य रखें तथा उसे नियमित रूप से उपयोग में लाया करें. 
साथ ही प्रत्येक बृहस्पतिवार देसी पान के 3 साबुत पत्ते लेकर भगवान शिव को अर्पित करते रहें. 
इस उपरोक्त उपाय से जहाँ एक ओर आपका जीवन सुगम होगा, वहीं आपको यदाकदा जीवन में अनायास उत्पन होने वाली कईं प्रकार की परेशानियों एवं बाधाओं से भी सहज ही मुक्ति मिलने लगेगी.

पारिवारिक कलह मुक्ति एवं दाम्पत्य सुख प्राप्ति हेतु:-

यदि आप दाम्पत्य जीवन में व्यवधान यथा पति-पत्नि में विवाद, वैचारिक मतभेद, अशान्ती जन्य किन्ही कष्टों का सामना कर रहे हैं तो उसकी निवृति एवं आपसी सामंजस्य की अभिवृद्धि हेतु आप प्रत्येक माह शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से पूर्णिमा तिथि तक नित्य केसर + कपूर मिश्रित जल द्वारा रूद्राभिषेक करें.
सफेद रंग के वस्त्र में 125 ग्राम चावल, चाँदी के 4 छोटे चौकोर टुकडे एवं एक मुट्ठी नागकेसर बाँधकर अपने घर की उत्तर दिशा में किसी स्थान पर रख दें. 

चाँदी में मंडवाकर द्वादशमुखी रूद्राक्ष शुक्ल पक्ष के किसी भी शुक्रवार के दिन गले में धारण करें. 

इस बात का विशेष रूप से स्मरण रखें कि उपाय अवधि में अंडा/माँस/शराब आदि किसी भी प्रकार के तामसिक पदार्थ का सेवन पूर्णत: वर्जित है. 

भय, मानसिक तनाव से मुक्ति हेतु:-

यदि आप किसी वजह से मानसिक तनाव में रहते हैं अथवा किसी अज्ञात भय से पीडित हैं, अपने आप को असुरक्षित महसूस करते हैं तो उसके लिए 11 बुधवार लगातार एक नारियल नीले वस्त्र में लपेटकर किसी भिखारी को दान करें. 
अपने श्यनकक्ष में ताबें का एक पिरामिड स्थापित करें.
नित्य मानसिक रूप से निम्न मन्त्र का जाप अवश्य किया करें.
मन्त्र:-  ॐ अतिक्रकर महाकाय, कल्पान्त दहनोपम भैरवाय नमस्तुभ्यमनुज्ञां दातुमहसि !! 
इस उपरोक्त उपाय से एक ओर जहाँ आपको मानसिक तनाव/भय/दबाव इत्यादि से मुक्ति मिलने लगेगी, वहीं परिवार के अन्य सदस्यों की भिन्न-भिन्न विचारधाराओं से मन में उपजने वाली उदासीनता एवं वैमनस्य का भाव भी कदापि जागृत नहीं हो पायेगा.


धनु लग्न और कष्ट निवारक उपाय


जीवन में भरपूर सुख और सफलता की प्राप्ति हर मनुष्य का एक सपना होता है। लेकिन सुख-दुख, गम-खुशी, अमीरी-गरीबी तथा रोग एवं स्वास्थ्य आदि कालचक्र के ऎसे धुरे हैं, जो जीवन के चलने के साथ-साथ ही चलते हैं. दुनिया में हर इन्सान किसी न किसी समस्या से जूझ रहा है , जिनमें से एक होती है--व्यक्ति सम्बंधी समस्या जैसे अपने बारे में/अपनी पत्नि/संतान के बारे में,संतान होने या न होने इत्यादि के बारे में, दूसरी स्थान सम्बंधी मसलन किसी स्थान विशेष जैसे जमीन, जायदाद, मकान, व्यवसाय, नौकरी आदि की समस्या और तीसरी धातु अर्थात धन सम्बंधी समस्या. जीवन में आने वाली इन समस्यायों हेतु प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने तरीके से उपाय भी करता है, जिससे कि जीवन को सुखपूर्वक भोगा जा सके.
यहाँ हम आपको आपके जन्म लग्नानुसार कुछ ऎसे ही उपायों की जानकारी दे रहे हैं, जिससे कि आप भी अपनी विभिन्न समस्यायों से सरलतापूर्वक एवं शीघ्रता से निजात पा सकते हैं. 

आर्थिक समस्या निवारण हेतु:-

यदि आप आजीविका के क्षेत्र में बारबार अवरोध अनुभव कर रहे हैं, कार्यक्षेत्र में अधिकारी वर्ग से सम्बंधों में बिगाड उत्पन्न हो रहा हो अथवा पिता से तनावपूर्व स्थितियों का सामना करना पड रहा हो, तो इसके लिए सर्वप्रथम शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन भगवान गणेश जी की चाँदी की एक प्रतिमा, एकादश मुखी रूद्राक्ष और 125 ग्राम पंचमेवा लाल वस्त्र में बाँधकर अपने घर अथवा कार्यस्थल की अल्मारी/तिजोरी में रखें. तत्पश्चात एक वर्ष तक नियमपूर्वक प्रत्येक पूर्णिमा के दिन " ॐ पूषन तवव्रते भयं नरिष्येम कदाचन स्तोतारस्त इहम्भसि !! ॐ पूष्णे नम: " मन्त्र के जाप पश्चात गाय का कच्चा दूध किसी निर्धन व्यक्ति को अवश्य दान किया करें.

केवलमात्र सिर्फ एक इसी उपरोक्त उपाय के करने से ही आप देखेंगें कि जहाँ आपकी आमदनी के स्त्रोत खुलने लगे हैं, वहीं सामाजिक संबंधों में भी मधुरता की अभिवृद्धि होने लगी है. इसके अतिरिक्त यदि आपको व्ययाधिक्य के कारण किन्ही आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड रहा हो, तो उसकी निवृति के लिए घर के पूजनस्थल पर चाँदी में निर्मित श्री यन्त्र स्थापित करें एवं उस पर लगातार 43 दिन तक नियमित मात्र एक गुलाब का पुष्प अर्पित किया करें.

भाग्योन्नति हेतु:-

यदि आपको भाग्योन्नति में बार-बार अवरोध कि स्थितियों का सामना करना पड रहा है, अथवा आपका प्रत्येक कार्य सफलता के समीप आकर रूक जाता हो, तो उसके लिए सर्वप्रथम शुक्ल पक्ष के रविवार के दिन सवा 5 रत्ती वजन का माणिक्य रत्न दाहिने हाथ की अनामिका अंगुली में धारण करें( जन्मकुंडली में सूर्य के नीच राशि में होने की स्थिति में नहीं) अथवा स्वर्ण मंडित एक तेरह मुखी रूद्राक्ष गले में धारण करें.शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को एक श्वेत रंग का रेशमी ध्वज बनाकर उसे पीपल के वृक्ष पर बाँध दें, तत्पश्चात प्रति सोमवार ॐ गं गणपतये नम: मन्त्रोचार सहित उस वृक्ष पर कर्पूर मिश्रित जल चढाकर उसकी 5 परिक्रमा किया करें.
आप देखेंगें कि शनै: शनै: आपके भाग्य के समस्त अवरोध हटकर जीवन में शान्ति एवं समृद्धि का समावेश होने लगा हैं.

सम्पत्ति, वाहन सुख प्राप्ति हेतु:-

यदि आप जमीन-जायदाद, नजदीकी सगे सम्बन्धियों अथवा वाहन सम्बंधी किसी प्रकार की कोई समस्या/कष्ट का सामना कर रहे हैं, तो इसके लिए आप नित्य प्रात: गाय के कच्चे दूध में शहद मिलाकर शंकर जी का अभिषेक करें और न्यूनतम 12 मंगलवार लगातार संध्या समय श्री हनुमान जी को मीठे पान का भोग लगायें. साथ ही शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को एक द्वादशमुखी रूद्राक्ष गले अथवा दाहिनी भुजा में अवश्य धारण करें.यदि आप विधिपूर्वक उपरोक्त उपाय को सम्पन्न कर सकें तो समझिए कि आप सम्पत्ति,वाहन अथवा सामाजिक व्यवहार एवं य़श-मान सम्बन्धी समस्त समस्यायों से बेहद आसानी से मुक्ति पा सकेंगें.

सुरूचिपूर्ण जीवन हेतु:-

यदि आप जीवन में बार-बार परेशानी एवं कार्यों में व्यवधान अनुभव कर रहे हों, तो इसकी निवृति हेतु आपको कम से कम ग्यारह शुक्रवार लगातार गन्ने के रस द्वारा रूद्राभिषेक करना चाहिए.
संभव हो तो मद्य-माँस इत्यादि दुर्व्यसनों से पूर्णत: दूर रहें एवं नित्य प्रात: अपने पितरों के निमित्त पितर गायत्री का जाप अवश्य किया करें. 
इससे जहाँ एक ओर आपका जीवन सुगम होगा, वहीं आपको जीवन में अनायास उत्पन हो रही कईं प्रकार की परेशानियों एवं बाधाओं से भी सहज ही मुक्ति मिलने लगेगी.

पारिवारिक कलह मुक्ति एवं दाम्पत्य सुख प्राप्ति हेतु:-

यदि आप दाम्पत्य जीवन में व्यवधान यथा पति-पत्नि में विवाद, वैचारिक मतभेद, अशान्ती जन्य किन्ही कष्टों का सामना कर रहे हैं तो उसकी निवृति एवं आपसी सामंजस्य की अभिवृद्धि हेतु आपको नियमित रूप से मन्दिर/गुरूद्वारा इत्यादि किसी धार्मिक स्थल पर अवश्य जाना चाहिए. यदि संभव हो तो संयुक्त परिवार में ही निवास करें. इसके अतिरिक्त लगातार 21 बुधवार लाल वस्त्र में एक जटायुक्त नारियल बाँधकर भगवती दुर्गा के मन्दिर में अर्पित करें एवं एक बार किसी धार्मिक स्थल पर अपने हाथों केले का पौधा रौपें.

इस बात का विशेष रूप से स्मरण रखें कि उपाय अवधि में अंडा/माँस/शराब आदि किसी भी प्रकार के तामसिक पदार्थ का सेवन पूर्णत: वर्जित है.

भय, मानसिक तनाव से मुक्ति हेतु:-

यदि आप किसी वजह से मानसिक तनाव में रहते हैं अथवा किसी अज्ञात भय से पीडित हैं, अपने आप को असुरक्षित महसूस करते हैं तो उसके लिए 7 शनिवार लगातार सुबह के समय एक काले रंग का छोटा सा गोलाकार पत्थर लेकर उसे अपने सिर से बायें से दायें की ओर घुमाकर तिलों के तेल में डुबोकर रख दें. तत्पश्चात संध्या समय उसे पीपल अथवा बरगद आदि किसी वृक्ष के नीचे रख आयें.

इससे एक ओर जहाँ आपको मानसिक तनाव/भय/दबाव इत्यादि से मुक्ति मिलने लगेगी, वहीं परिवार के अन्य सदस्यों की भिन्न-भिन्न विचारधाराओं से मन में उपजने वाली उदासीनता एवं वैमनस्य का भाव भी जागृत नहीं हो पायेगा.

Tuesday, 23 June 2015

वृश्चिक लग्न और कष्ट निवारक उपाय


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जीवन में भरपूर सुख और सफलता की प्राप्ति हर मनुष्य का एक सपना होता है। लेकिन सुख-दुख, गम-खुशी, अमीरी-गरीबी तथा रोग एवं स्वास्थ्य आदि कालचक्र के ऎसे धुरे हैं, जो जीवन के चलने के साथ-साथ ही चलते हैं. दुनिया में हरेक इन्सान किसी न किसी समस्या से जूझ रहा है , जिनमें से एक होती है--व्यक्ति सम्बंधी समस्या जैसे अपने बारे में/अपनी पत्नि/संतान के बारे में,संतान होने या न होने इत्यादि के बारे में, दूसरी स्थान सम्बंधी मसलन किसी स्थान विशेष जैसे जमीन, जायदाद, मकान, व्यवसाय, नौकरी आदि की समस्या और तीसरी धातु अर्थात धन सम्बंधी समस्या. जीवन में आने वाली इन समस्यायों हेतु प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने तरीके से उपाय भी करता है, जिससे कि जीवन को सुखपूर्वक भोगा जा सके. यहाँ हम आपको आपके जन्म लग्नानुसार कुछ ऎसे ही उपायों की जानकारी दे रहे हैं, जिससे कि आप भी अपनी विभिन्न समस्यायों से सरलतापूर्वक एवं शीघ्रता से निजात पा सकते हैं. 


आर्थिक समस्या निवारण हेतु:-

यदि आप आजीविका के क्षेत्र में बारबार अवरोध अनुभव कर रहे हैं, कार्यक्षेत्र में अधिकारी वर्ग से सम्बंधों में बिगाड उत्पन्न हो रहा हो अथवा पिता से तनावपूर्व स्थितियों का सामना करना पड रहा हो, तो इसके लिए सर्वप्रथम इस बात को विशेष तौर पर स्मरण रखें कि अपनी अथवा किसी अन्य की गलतियों और परेशानियों का अधिक बखान न करें अन्यथा आपको जीवन में बारबार आर्थिक समस्यायों का सामना करना पडता ही रहेगा और आप लाख प्रयत्न करने के पश्चात भी कभी पूर्णत: इस कष्ट से मुक्त नहीं हो पायेंगें.

अपनी आजीविका क्षेत्र में उत्पन अवरोध को समाप्त करने हेतु आप नियमित रूप से 16 बुधवार लगातार पान के पत्ते में 1 कौडी, 2 लौंग और चुटकी भर सिन्दूर लपेटकर दोपहर पश्चात किसी नदी/नहर/समुद्र आदि में विसर्जित करें. नित्य संध्या समय श्री बटुक भैरव स्त्रोत्र का पाठ अवश्य किया करें.

यदि आर्थिक परेशानी का सामना करना पड रहा है, बारबार धनहानि हो रही है, व्ययाधिक्य से परेशान हैं अथवा आप ऋण की समस्या से पीडित हैं तो उसकी निवृति के लिए काले पत्थर की दो वृषभ ( शिव वाहन नन्दी) प्रतिमा खरीदकर एक को भवन की ईशान दिशा में और दूसरी प्रतिमा घर के मुख्य प्रवेशद्वार के बाहरी ओर स्थापित करें. प्रत्येक बृहस्पतिवार (न्यूनतम 12 सप्ताह अवश्य) किसी वृषभ को गुड खिलाया करें एवं नित्य प्रात: पूर्वाभिमुख हो ॐ श्रीवत्सलाय वत्सराजाय नम: मन्त्र का जप किया करें.
अपने जीवन कल्याणार्थ आपको छ:मुखी रूद्राक्ष धारण करना भी उत्तम फलदायक सिद्ध होगा. पूर्ण श्रद्धा एवं विश्वासपूर्वक उपरोक्त उपाय को करें तो आप देखेंगें कि जहाँ आपकी आमदनी के स्त्रोत खुलने लगे हैं, वहीं पारिवारिक एवं सामाजिक संबंधों में भी मधुरता की अभिवृद्धि होने लगी है.


सम्पत्ति, वाहन सुख प्राप्ति हेतु:-

यदि आप जमीन-जायदाद, नजदीकी सगे सम्बन्धियों, बन्धु-बांधवों से आपसी सम्बन्धों को लेकर अथवा वाहन सम्बंधी किसी प्रकार की कोई समस्या/कष्ट का सामना कर रहे हैं, तो इसके लिए सर्वप्रथम शुक्ल पक्ष के किसी भी शनिवार के दिन अपने घर के मुख्य द्वार के दोनों ओर अपनी कनिष्ठका अंगुली के बराबर साईज की चाँदी की एक-एक कील ठोक दें. तत्पश्चात सर्वप्रथम चाँदी में मंडवाकर गले में एक द्वादशमुखी रूद्राक्ष धारण करें एवं प्रत्येक मंगलवार किसी भिखारी को यथासामर्थ्य काले तिल और चावल का दान अवश्य करते रहें. इस उपाय को यदि आप नियमित रूप से श्रद्धा एवं विश्वास पूर्वक कम से कम छ माह की अवधि तक कर सकें तो आपको अपनी इन उपरोक्त सभी समस्यायों का समाधान अपने सामने दिखाई देने लगेगा.

भाग्योन्नति हेतु:-

यदि आपको भाग्योन्नति में बार-बार अवरोध कि स्थितियों का सामना करना पड रहा है, अथवा आपका प्रत्येक कार्य सफलता के समीप आकर रूक जाता हो, तो उसके लिए सर्वप्रथम किसी गुरू से दीक्षा ग्रहण करें अथवा एक बार गंगास्नान कर के आयें, तत्पश्चात शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को स्वर्ण निर्मित एक ध्वज गले में धारण करें एवं प्रत्येक शनिवार निम्न मन्त्र का 12 बार उच्चारण करते हुए लोहे के किसी पात्र में तिल का तेल भरकर और उसमें अपनी छाया देखकर भड्डरी को दान करते रहें अथवा पीपलवृक्ष के नीचे रख आयें.

ॐ तिलैस्तु निर्मितं तेलं गुह्यन्धकार निवारणम !
सर्वपाप विनिर्मुक्तं तैलं दानेन केशव !!

आप देखेंगें कि शनै: शनै: आपके भाग्य के समस्त अवरोध हटकर जीवन में शान्ति एवं समृद्धि का समावेश होने लगा हैं.

शारीरिक एवं मानसिक कष्ट निवारणार्थ हेतु:-

यदि आप किसी भी प्रकार की शारीरिक अथवा मानसिक आधि-व्याधी से परेशान हैं, रोग-बीमारी पर अधिक धन खर्च हो रहा है अथवा शत्रु पक्ष की प्रबलता बनी रहती है, तो आपको अपने जीवन कल्याणार्थ नित्य प्रति निम्न मन्त्र का जप अवश्य करना चाहिए.

ॐ शरणागतदीनार्त परित्राणपरायणे
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोस्तुते ॐ !!


ताबें के किसी पात्र द्वारा जल में रक्त चन्दन, सफेद तिल, जटामाँसी और शहद मिश्रित कर नित्य प्रति भगवान सूर्यदेव को अर्घ्य देते रहें एवं एक पंचमुखी और एक दशमुखी रूद्राक्ष एक साथ शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन गले में धारण करें. 
 
इस उपाय से जहाँ एक ओर आप शारीरिक एवं मानसिक रोग-व्याधि एवं शत्रु पीडा से निजात पा सकेंगें, वहीं आपको जीवन में यदाकदा अनायास उत्पन होने वाली कईं अन्य प्रकार की परेशानियों एवं बाधाओं से भी सहज ही मुक्ति मिलने लगेगी.

दाम्पत्य सुख हेतु:-

यदि आप दाम्पत्य जीवन में व्यवधान यथा पति-पत्नि में विवाद, वैचारिक मतभेद, अशान्ती जन्य किन्ही कष्टों का सामना कर रहे हैं तो उसकी निवृति एवं आपसी सामंजस्य की अभिवृद्धि हेतु आपको सर्वप्रथम किसी मन्दिर में कांसे के पात्र का दान करना चाहिए. नित्य संध्या समय घर के पूजास्थल पर गौघृत का एक दीपक अवश्य जलाना चाहिए. अपने घर के उत्तर-पश्चिम कोण में किसी सुन्दर से मिट्टी के बर्तन में 2 चाँदी के सिक्के, 2 सुच्चे मोती (White Pearl) एवं 1 द्वादशमुखी रूद्राक्ष डालकर हमेशा के लिए रख छोडें. 

भय, मानसिक तनाव से मुक्ति हेतु:-

यदि आप किसी वजह से मानसिक तनाव में रहते हैं अथवा किसी अज्ञात भय से पीडित हैं, अपने आप को असुरक्षित महसूस करते हैं तो उसके लिए सर्वप्रथम एक बात का ध्यान रखें कि अपने घर के पूजास्थल को कदापि परिवर्तित न करें. भवन की छत पर पक्षियों के लिए पानी पीने का पात्र रखें एवं कम से कम 12 बुधवार किसी मिट्टी के पात्र में मूँग भरकर मन्दिर में अर्पित करें. साथ ही अपने जीवन कल्याणार्थ नित्य प्रात: ॐ सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते ! भयभ्यस्त्राहि नो दुर्गा देवि नमोस्तु ते !! मन्त्र का जप अवश्य किया करें.